आज भी
तो फिर कल तुम्हारा आना पक्का समझूँ , तृषा ने मेरी आँखों मे झाँकते हुए कुछ इस तरह पूछा मानो मेरी आँखों से मेरा जवाब तलाश रही हो। अच्छा तो रविवार है कल , मुझे अचानक याद आया। हाँ, आ जाऊँगी लेकिन अभी तो मेरा पीछा छोड़ो मेरी माँ! मैंने हँसते हुए कहा। प्रत्युत्तर में वो भी मुस्कुरा दी।
तृषा को मैं अभी कुछ दिनों से ही जानती हूँ। दरअसल हुआ यूँ की मैं बुआजी के घर गर्मी की छुट्टियाँ में आई हुई थी और तृषा बुआजी के मकान में नए किरायेदार के रूप में शिफ्ट हुई थी। फैमिली में उसके अलावा उसके माँ और पापा थे। उम्र में मुझसे वो लगभग आठ महीने ही बड़ी है और एक क्लास सीनियर भी ,पर उसकी बातें कुछ इस तरह होती हैं जैसे उसे जिंदगी का अच्छा-खासा अनुभव हो। उसने अपनी बहुत सी बातें मेरे साथ साझा की हैं, कभी-कभी तो लगता है कि वो झूठ बोल रही है, पर वाकई में वो झूठ नहीं बोलती। मैं उसे कई बार आजमा चुकी हूं।
उसे सब कुछ याद रहता है, दुनिया भर की बातें और साथ ही साथ अपने क्लास के 6 सेक्शन्स की टॉपर भी है। मैं उसे M T कहक़र ही बुलाती हूँ (M T- Multitalented) वो मुस्कुरा देती है।
शनिवार की रात को ही मैंने अपना होमवर्क और सभी जरूरी काम निपटा लिए थे, क्योंकि मुझे पता था कि उसके पास बैठने का मतलब था कि फिर काफी लंबे समय की फुरसत। सुबह थोड़ा देर से नींद खुली। मैं नहाने के लिए वाशरूम की तरफ चली गई। नहाकर लौटी तो देखा कि तृषा मेरे कमरे पर ही थी। बिन बुलाया मेहमान, मैंने उसे देखकर कहा। मुस्कुराते हुए उसने जवाब दिया-मुझे लगा कि तुम्हें क्यों परेशान करूँ, माँ की मदद कराके मैं आ गई। तो बैठो मैंने कहा और किचन में गई। दो प्लेट्स में नाश्ता लगाया और कमरे पर आ गई। बुआजी पूजा कर रही थीं और भइया जिम गए हुए थे। तृषा अपने साथ एक डायरी लेकर आई थी। इसमें क्या है? मैंने पूछा। ये देखो, उसने एक लड़के का फोटो निकालकर मुझे दिखाया। ये कौन है, पहले कभी नही देखा और भी ना जाने कौन-कौन से सवाल मैंने कर डाले। थोड़ी देर तक वो खामोश रही। उसकी खामोशी मेरी बेचैनी को और भी बढ़ा रही थी। फिर उसने अपना पूरा वाकया मुझे सुनाया। मैं उसकी तरफ हैरानी से बस देखे जा रही थी। उसे देखकर यकीन नहीं हो रहा था कि खुदा इतनी छोटी उम्र में किसी को इतना समझदार बना सकते हैं।
खैर उसने जो भी बताया मुझे, वो सब कुछ लिखना नामुमकिन तो नहीं है पर उससे मेरी कहानी , कहानी ना होकर एक नॉवेल बन जाएगी।
आप सभी पाठकों को मैं संक्षेप में बता दूं कि तृषा ने उस लड़के का नाम ऋजुल बताया था। तृषा और वो बहुत अच्छे दोस्त होने के साथ-साथ एक दूसरे के बहुत करीब आ चुके थे। तृषा ने उसे मरने से बचाया था पर कुछ ऐसे हालात आये जो वाकई में बेहद निराशाजनक थे। अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद वो ऋजुल को खो चुकी थी। पूरी घटना सुनाते हुए उसकी आंखें आँसुओ से भींगी रही। मैंने उससे जाते – जाते पूछा था, तुम्हें इंतजार है उसका? मैं उसे हर्ट नहीं करना चाहती थी पर ये सवाल पूछना मुझे जरूरी लगा।
उसने बिना रुके जवाब दिया- हाँ, आज भी और हमेशा रहेगा। उसका आत्मविश्वास देखकर मैं हैरान थी। इसके आगे मैं कुछ नहीं कह सकी।
इस बात को एक लंबा अरसा हो गया। अब उससे बात भी नहीं होती।बुआजी ने बताया था कि वो लोग कहीं और चले गए। मैं आज तक उसे और उसकी सभी बातों को भूलकर भी नहीं भूल पाई हूँ। उसने मुझे बहुत कुछ सिखाया। ईश्वर से प्रार्थना करती हूं कि वो जहाँ भी हो , खुश रहे और उसका इंतजार अब खत्म हो गया हो।
प्रस्तुतकर्ता – मानसी पाल ‘मन्सू’
आत्मजा – श्री अभिलाष सिंह , श्रीमती प्रतिमा पाल
फतेहपुर