आज फिर ….
आज फिर ….
नहीं जला
चूल्हा
उसके घर
आज फिर
घर से निकला
उदासी में लिपटा
काम की तलाश में
एक साया
आज फिर
लौट आया
रोज की तरह
खाली हाथ
आज फिर
पेट में
क्षुधा की ज्वाला
सड़क पर
काम की ज्वाला
नौकरियों में
आरक्षण की ज्वाला
ज्ञान गौण
प्रश्न मौन
उलझन ही उलझन
माथे पर
चिंताओं को समेंटे
यथार्थ से निराकृत
खाली हाथ
लौट आया
आज फिर
पत्नी की आँखों में
सवाल
बच्चों की आँखों में
सवाल
माँ की आँखों में
बस
अपने बच्चे की
उबलती
बेबसी
जो
बह निकली
रोज की तरह
आज
फि…….. र
सुशील सरना