आज प्रकृति का दोहन
तड़फ रही है व्याकुल धरती ,नित्य प्रकृति का दोहन।
नयन नीर भर आए उसके , झुलसा है अवनि का तनमन।
कंक्रीट के जंगल फैले , काट दिए पहाड़ सघन वन।
रोज दरकती छाती उसकी , घायल है उसका हर कण कण।।
शायद भागीरथ प्रयास हो , जो भी हो सब करे संरक्षण ।
बदले की न बात पुत्र से , सोच रही है कब से मां बन ।।