आज नहीं तो कल का संकल्प
तुम्हारी मृत्यु पर रोया था मैं।
मेरी मृत्यु पर खुद को शुभकामना तो दो।
और मुझे मुबारकबाद।
तुम्हें जीवित होने में
सहयोग किया था मैंने।
मृत्यु प्राप्त करने का
आशीर्वाद तो दो मुझे।
युद्ध सृष्टिकाल की परंपरा है।
सारी रचना विध्वंस से अभिशप्त।
निर्माण फिर भी अनवरत है।
यह होते हुए भी, तुम लालायित रहे
ध्वंस और निर्माण की यांत्रिकता
जानने के लिए।
इसकी आध्यमिकता पर व्याख्या
लिखने के लिए।
तुम्हारे मन में विवेक पैदा करने हेतु
मैंने तपस्याएँ की हिमालय की
गुफाओं में।
तुम शंकाओं को जन्म देकर
मेरी बुद्धि को प्रेरित तो करो।
तुम कर्तव्यहीनता को
उपलब्धियों से प्रतिष्ठित
कराते रहे,हे कुमार।
प्रजातन्त्र के दौर में
इतिहास दुहरा-दुहरा कर
राजमुकुट पहनने का प्रयत्न
अनुचित ही नहीं घिनौने व्यक्तित्व की
है अबाध अभिव्यक्ति।
सारे लेन-देन में तुमने धूर्तता निभाया।
मैंने तुम्हें सफलता की दी बधाई।
तुम मेरा सर्वस्व खो जाने पर
निर्ममता एवं अनभिज्ञता तो दिखाओ।
मैंने श्रमपूर्वक पृथ्वी को सजाया।
तुमने मेरे श्रम पर अपना हक जताया।
पुन: सजाने के लिए काश! मैं
ध्वंस का संकल्प ले पाता।
अपने लिए सजाने का संकल्प
इस तरह मेरे हाथों से जाता है फिसल।
कल भी सोचा था
आज भी सोचता हूँ
मेरा श्वेद मुझे देगा पृथ्वी अवश्य
आज नहीं तो कल।
——————-25/3/23———-