आज के युग में नारीवाद
आज के युग का नारीवाद
आजादी के. 76 वर्ष बाद नारीवाद की बात करना
बेबुनियाद हैं।
जी हां सही कह रही हूं मैं।बहुत से लोगों को मेरी बात ही बेबुनियाद लगेगी। इस विषय पर ज्यादातर मर्दों का ही नहीं, औरतों की प्रतिक्रिया भी साकारात्मक नहीं होगी। आप पूछेंगे कैसे____? ज़रा रुकिए ,और देखिये।
**”अरे भाई,सुबह सज धजकर आफिस के
लिए निकलती है,मनचाहा पहनती हैं, मनचाहा खाती हैं
जहां चाहे आती जाती है ,अब और कितनी आज़ादी चाहिए इनको””**
**”चार चपाती बनाई,और चल दिए मोहिनी मूरत बन ,दूसरे मर्दों को रिझाने ।””,**
**,””सुन री शीला,ये जो शर्मा जी की बहू है न , मुझे तो इसके लक्षण ठीक नहीं लगते,कैसे गैर मर्दों के संग आती जाती है””**
अब ये तो थे कुछ उदाहरण और चरित्र प्रमाण-पत्र जो समाज हर औरत को दे रहा है ।
मुंह पर सब कहते हैं अच्छा है जाब करती हो ,आपने पति का हाथ बंटाती हो ।औरत का पैसे कमाना सब को
अच्छा लगता है लेकिन घर से निकलना अच्छा नहीं लगता। औरत को अगर काम करना है तो हर तरह के लोगों से उसे मिलना होगा,बात करनी होगी ।क्या किसी
पुरुष के कार्यक्षेत्र में औरतें काम नहीं करती।
अगर पुरुष मीटिंग से देर रात लेट आ सकता है तो औरत क्यूं नही ।ये है आज़ादी 75 वर्षों बाद।
आजादी के इतने वर्षों बाद भी औरत को एक सुरक्षित समाजिक ढांचा नहीं मिला।अगर वो असुरक्षित हैं तो कारण क्या है ?? वहीं मर्द की मानसिकता , जिसने औरत को सिर्फ उपभोग की वस्तु मात्र समझा है। भारत में करीब 2 करोड़ औरतें वैश्य हैं। समाचार एजेंसी रियूटर (Reuters) के मुताबिक करीब 14 करोड़ मर्द रोज़ वैश्य के साथ हमबिस्तर होते हैं।फिर भी !!!!!
बलात्कार का आंकड़ा दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है क्यूं? ज़रा सोचिए !!!!
अगला पहलू ये है औरत का हर जगह यौन शोषण होता है । अपनी शर्तों पर जीने वाली पढ़ी-लिखी औरतों को समाज चरित्र हीन समझता है।
नारीवाद अभी भी सिर्फ किताबों और कागजों की शोभा है ।
दहेज के लिए बहूएं अब भी जलाई जाती है।
मर्द के पास बच्चा पैदा करने की क्षमता न हो तो, औरत को ही बांझ कहा जाता है ।
शराब ,अफीम स्मैक हर नशे में धुत हुए मर्दों को संभालना औरत की जिम्मेदारी है। और उस पर घरेलू
हिंसा ।
।2015-16 के बीच हुए 6 लाख परिवारों की करीब 7 लाख महिलाओं के बीच कराए गए एक सर्वे के अनुसार लगभग 31 फीसद महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार हुई थी। 4 फीसद महिलाओं को तो गर्भावस्था के दौरान भी हिंसा का सामना करना पड़ा। सरकारी आंकड़ों से एक बात तो उजागर होती है कि भारत में महिलाओं के खिलाफ बड़े पैमाने पर घरेलू हिंसा एक वास्तविकता है लेकिन सबसे दुखद यह है कि ज्यादातर मामलों में डर और परिवार वालों की इज्जत के कारण इसकी शिकायत भी दर्ज नहीं होती है।
फिर भी औरत सब करती है ,वंश बढ़ाती है ,घर संभालती है । बच्चे पालती है।**ऊपर से अगर पुरुष किसी दूसरी औरत से चक्कर चला ले तो भी औरत को सीख,””तुम्हें ही मरद को रिझाना नहीं आया **
मेरा मानना तो ये है अगर हम इतने बरसों बाद भी औरत को एक सुरक्षित समाज नहीं दे पाये तो आजादी
कैसी?? नारीवाद कैसा??
सुरिंदर कौर