“आज की मेरी परिकल्पना”
“आज की मेरी परिकल्पना”
नहीं वो “राम” आए हैं,
नहीं वो “राज्य” ही आया !
परंतु कोई भी युग भी , उसे नहीं भूल ही पाया !!
जो संभव हो नहीं सकता,
कवि रचना में कहते हैं !
उन्हीं परिकल्पनाओं से, जगत कल्याण करते हैं !!
@ परिमल
“आज की मेरी परिकल्पना”
नहीं वो “राम” आए हैं,
नहीं वो “राज्य” ही आया !
परंतु कोई भी युग भी , उसे नहीं भूल ही पाया !!
जो संभव हो नहीं सकता,
कवि रचना में कहते हैं !
उन्हीं परिकल्पनाओं से, जगत कल्याण करते हैं !!
@ परिमल