आज की औरत
मैं औरत हूं ग़ुलाम नहीं
खुशामदी मेरा काम नहीं
मैं चाहे जिससे बात करूं
मैं चाहे जिसका साथ करूं…
(१)
कोई मुझे क्यों रोकेगा
कोई मुझे क्यों टोकेगा
मैं चाहे जिसका हाथ धरूं
मैं चाहे जिसके पास रहूं…
(२)
भाड़ में जाए लोक लाज
भाड़ में जाए रीति-रिवाज
मैं चाहे लीला रास करूं
मैं चाहे वन में वास करूं…
(३)
मेरी ज़िंदगी मेरा फ़ैसला
क्यों मानूंगी तेरा फ़ैसला
मैं चाहे जैसे दिन बिताऊं
मैं चाहे जैसे रात करूं…
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Shekhar Chandra Mitra
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