आज का अभिमन्यु
आज फिर अभिमन्यु
चक्रव्यूह में घिर गया,
परंतु यह चक्रव्यूह
कौरवों द्वारा नहीं रचा गया
वरन् नैतिक मूल्यों के
ह्रास ने
खुद ब खुद उसे
अपने मोहपाश में
उलझा लिया।
कुरूक्षेत्र वाला अभिमन्यु
चक्रव्यूह में
घुसना जानता था,
वह बाहर भी आ सकता था
अगर उसकी मां
निद्रा के आगोश में
समाई न होती।
यहीं से दुर्भाग्य ने
करवट ली थी
वह लत्रते-लड़ते
वीर गति को प्राप्त हुआ।
पर यह अभिमन्यु
एक बार नहीं
नियति के हाथों
बार-बार मारा गया ।
उसकी लड़ाई अन्याय और
अधर्म के खिलाफ थी,
परंतु यह
स्व के लिए लड़ रहा है,
परिस्थितियों से
जूझ रहा है।
नैतिक मूल्यों के खिलाफ
उसका संघर्ष
आज भी जारी है,
अनवरत जारी है ……..।