आजु के जमाना
बर औ कनिया नाचे, बात सुनी सांचे – सांचे,
लाज हाया माटी मिले, चूल्हिये जोरात बा।
भवे सङ्गे भसुर खास, ससुई न आवे रास,
लाज के जनाजा उठल, चीता में खोरात बा।
दुध घी दूर भइल, दही उफर पर गइल,
रम कोकाकोला सङ्गे, कइसे घोरात बा।
बेटी जाके राज करे, बहु चुल्हिये मे़ जरे
मन के भरम इहे, मुंह निपोरात बा।।
✍️ पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’