Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
2 Jul 2021 · 3 min read

आजादी

आखिर वह निर्णय मीरा ने ले ही लिया,जिसे वह जीवन भर टालने का प्रयास करती आ रही थी।विजय के साथ बिताये हुए कई वर्षों का वैवाहिक जीवन आज पूरी तरह समाप्त कर दिया मीरा ने।तलाक की अर्जी पर हस्ताक्षर करते समय बरबस उसकी आँखों के सामने विगत वर्षो का इतिहास घूमने लगा।
विजय जब पहली बार मीरा के जीवन में आया था तब मीरा को ऐसा लगा मानो यही वह व्यक्ति है जिससे मेरा अधूरा जीवन पूर्णता को प्राप्त हो सकता है।विजय भी मीरा को रंगीन जीवन के ख़्वाब दिखाता।मीरा एक मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखती थी,जहाँ इस तरह के प्रेम-विवाह की कल्पना भी नहीं की जा सकती।साथ ही विजय का अलग जाति से संबंधित होना भी एक और महत्वपूर्ण कारण था कि मीरा का परिवार इस बात को कभी स्वीकार नहीं करता।…….उन दिनों अपने वादों और सच्चे प्रेम में डूबी मीरा इन सभी अंतरों को कहाँ समझ पायी थी????विजय ही उसके जीवन का निर्माता जो बन बैठा था।सही-गलत तो विजय द्वारा निर्धारित किया जाता।
वह दिन भी आ गया जब मीरा ने अपने परिवार को तिलांजलि देकर विजय के साथ भागकर शादी कर ली।
शादी के बाद से ही विजय का असली रूप मीरा के सामने आने लगा।मीरा को इस बात से गहरा सदमा लगा जब उसे पता चला कि जो वादे विजय ने उसके साथ किये थे वैसे ही वादे उसने ना जाने कितनी और लड़कियों से भी कर रखे थे।……केवल शारिरिक सुख और आजाद जिंदगी जीना ही विजय ने अपने जीवन में सीखा था।.. मीरा को उम्मीद थी कि विजय के व्यवहार में बदलाव आएगा।पर ऐसा नहीं हुआ।विवाह के बाद भी विजय ने अनैतिक संबंध अन्य स्त्रियों से पूर्ववत बनाये रखे।……हाँ,मीरा की जिंदगी में इतना फर्क आ गया कि विजय उसे आये दिन बेतहाशा मारने लगा,गंदी-गंदी गालियों से मीरा को शारिरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित करने लगा।मीरा ने इसे भी अपना भाग्य मान सबकुछ सहन करना स्वीकार कर लिया।
……..कहाँ जाती??
…मायके का द्वार तो उसके घर से भाग जाने के बाद ही बंद हो गया था।
पति का सहारा था,पर वह सहारा भी खोखला सिद्ध हुआ था।…….परमेश्वर होता है……..
यह मानकर ही वह रावण की पूजा राम की तरह ही करने लगी।पर विजय का अहंकार बढ़ता ही चला गया।वह मीरा के इस समझौते को उसकी कमजोरी मान कर अत्याचारों की हदों को बढ़ाते चला गया।
समय पंख लगाकर गुजर गया और मीरा ने एक बेटे को जन्म दिया।यह सोचकर कि अब तो बेटा दिया है मैंने,शायद अब तो आत्मसम्मान से जीने को मिलेगा। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ।मीरा एक छत के आसरे और पुत्र को पिता के साये से वंचित ना करने की भावना से सब कुछ सहती चली गयी।इतने पर भी जब विजय के अहंकार की तुष्टि ना हो पायी तब मीरा ने तलाक लेने का निश्चय कर लिया।
आज जब तलाक के पेपर्स सामने थे तो वह समझ नहीं पा रही थी कि क्या करूँ????तभी समीप खड़ा पन्द्रह वर्षीय बेटा कह उठा,”आप क्यों इस रिश्ते को लेकर इतना सोच रहे हो????जीवन भर ये सबकुछ इसलिए सहन किया कि मुझे पिता का स्नेह मिल सके।
……….आप हर एक अत्याचार सहती रहीं।क्या कभी आपने ये बात सोची नहीं कि एक चरित्रहीन पिता के साये में रहकर मुझपर क्या असर होगा???ऐसे पिता से तो बिना पिता के जीवन श्रेष्ठ है।
…….मैंने यह कभी नहीं चाहा की आप हर रोज मरकर अपना जीवन जीये।….और आपने कैसे सोच लिया की मैं खुश रहूँगा????आपको तिल-तिल मरता देख मैं भी अंदर-ही-अंदर घुटते रहता हूँ।बस कह नहीं पाया यह सोचकर कि आपकी परेशानियाँ और नहीं बढ़ानी अब।

घर से बाहर भी रहकर आपकी चिंता लगी रहती है।।भय बना रहता है कि मेरी अनुपस्तिथि में घर में आपकी क्या दशा होगी????
क्या कभी आपने मेरी हालत समझने की कोशिश की है????जो इंसान आपसे बेवफाई कर सकता है वह भला बच्चों के प्रति अपना कर्तव्य कैसे निभाएगा??????
इस रिश्ते को तोड़कर सिर्फ आप ही आजाद नहीं होंगे,मैं भी सड़े-गले बेवजह के रिश्तों से मुक्ति पा लूँगा।आज से मैं आपका सहारा बनूँगा।

अपने पन्द्रह वर्ष के बेटे की समझदारी भरी बातें सुन असमंजस में पड़ी मीरा ने तुरंत आजादी के उन पेपर्स पर हस्ताक्षर कर दिया।
………सही मायने में आज मीरा गुलामी से आजाद हुई थी।

एक विचार बड़ी दृढ़ता से मन में समा गया————“अब कोई गम नहीं,कोई अफसोस नहीं,किसी बात का भय नहीं।किसी से सहायता,अपेक्षा या सहानुभूति की जरूरत नहीं।मेरा बेटा जो मेरे साथ है।”

….विवाह से पहले की आत्मविश्वासी मीरा का अक्स फिर एकबार मीराँ के भीतर जाग उठा था।

Language: Hindi
321 Views

You may also like these posts

वक़्त हमेशा एक जैसा नहीं रहता...
वक़्त हमेशा एक जैसा नहीं रहता...
Ajit Kumar "Karn"
राह में मिला कोई तो ठहर गई मैं
राह में मिला कोई तो ठहर गई मैं
Jyoti Roshni
सफलता
सफलता
Paras Nath Jha
Yes,u r my love.
Yes,u r my love.
Priya princess panwar
मुक्तक
मुक्तक
अवध किशोर 'अवधू'
विवेकवान कैसे बनें। ~ रविकेश झा
विवेकवान कैसे बनें। ~ रविकेश झा
Ravikesh Jha
मन किसी ओर नहीं लगता है
मन किसी ओर नहीं लगता है
Shweta Soni
अन्तर्मन को झांकती ये निगाहें
अन्तर्मन को झांकती ये निगाहें
Pramila sultan
मौन
मौन
Vivek Pandey
🙅मूर्ख मीडिया की देन🙅
🙅मूर्ख मीडिया की देन🙅
*प्रणय*
हमारे जख्मों पे जाया न कर।
हमारे जख्मों पे जाया न कर।
Manoj Mahato
बड़े दिलवाले
बड़े दिलवाले
Sanjay ' शून्य'
नियति
नियति
मिथलेश सिंह"मिलिंद"
नारी
नारी
राकेश पाठक कठारा
हमेशा कुछ ऐसा करते रहिए जिससे लोगों का ध्यान आपके प्रति आकषि
हमेशा कुछ ऐसा करते रहिए जिससे लोगों का ध्यान आपके प्रति आकषि
Raju Gajbhiye
कोई भोली समझता है
कोई भोली समझता है
VINOD CHAUHAN
ग़ज़ल (थाम लोगे तुम अग़र...)
ग़ज़ल (थाम लोगे तुम अग़र...)
डॉक्टर रागिनी
"चित्रकोट महोत्सव"
Dr. Kishan tandon kranti
J88 Okvip
J88 Okvip
J88 Okvip
छौर कर लिया
छौर कर लिया
Sonu sugandh
अहंकार
अहंकार
Bindesh kumar jha
दिल की हसरत
दिल की हसरत
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
पीत पात सब झड़ गए,
पीत पात सब झड़ गए,
sushil sarna
दो जून की रोटी
दो जून की रोटी
krishna waghmare , कवि,लेखक,पेंटर
अपनों से वक्त
अपनों से वक्त
Dr.sima
"মেঘ -দূত "
DrLakshman Jha Parimal
सुप्रभात प्रिय..👏👏
सुप्रभात प्रिय..👏👏
आर.एस. 'प्रीतम'
2573.पूर्णिका
2573.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
दिमाग शहर मे नौकरी तो करता है मगर
दिमाग शहर मे नौकरी तो करता है मगर
पूर्वार्थ
जल प्रदूषण दुःख की है खबर
जल प्रदूषण दुःख की है खबर
Buddha Prakash
Loading...