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2 Jul 2021 · 3 min read

आजादी

आखिर वह निर्णय मीरा ने ले ही लिया,जिसे वह जीवन भर टालने का प्रयास करती आ रही थी।विजय के साथ बिताये हुए कई वर्षों का वैवाहिक जीवन आज पूरी तरह समाप्त कर दिया मीरा ने।तलाक की अर्जी पर हस्ताक्षर करते समय बरबस उसकी आँखों के सामने विगत वर्षो का इतिहास घूमने लगा।
विजय जब पहली बार मीरा के जीवन में आया था तब मीरा को ऐसा लगा मानो यही वह व्यक्ति है जिससे मेरा अधूरा जीवन पूर्णता को प्राप्त हो सकता है।विजय भी मीरा को रंगीन जीवन के ख़्वाब दिखाता।मीरा एक मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखती थी,जहाँ इस तरह के प्रेम-विवाह की कल्पना भी नहीं की जा सकती।साथ ही विजय का अलग जाति से संबंधित होना भी एक और महत्वपूर्ण कारण था कि मीरा का परिवार इस बात को कभी स्वीकार नहीं करता।…….उन दिनों अपने वादों और सच्चे प्रेम में डूबी मीरा इन सभी अंतरों को कहाँ समझ पायी थी????विजय ही उसके जीवन का निर्माता जो बन बैठा था।सही-गलत तो विजय द्वारा निर्धारित किया जाता।
वह दिन भी आ गया जब मीरा ने अपने परिवार को तिलांजलि देकर विजय के साथ भागकर शादी कर ली।
शादी के बाद से ही विजय का असली रूप मीरा के सामने आने लगा।मीरा को इस बात से गहरा सदमा लगा जब उसे पता चला कि जो वादे विजय ने उसके साथ किये थे वैसे ही वादे उसने ना जाने कितनी और लड़कियों से भी कर रखे थे।……केवल शारिरिक सुख और आजाद जिंदगी जीना ही विजय ने अपने जीवन में सीखा था।.. मीरा को उम्मीद थी कि विजय के व्यवहार में बदलाव आएगा।पर ऐसा नहीं हुआ।विवाह के बाद भी विजय ने अनैतिक संबंध अन्य स्त्रियों से पूर्ववत बनाये रखे।……हाँ,मीरा की जिंदगी में इतना फर्क आ गया कि विजय उसे आये दिन बेतहाशा मारने लगा,गंदी-गंदी गालियों से मीरा को शारिरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित करने लगा।मीरा ने इसे भी अपना भाग्य मान सबकुछ सहन करना स्वीकार कर लिया।
……..कहाँ जाती??
…मायके का द्वार तो उसके घर से भाग जाने के बाद ही बंद हो गया था।
पति का सहारा था,पर वह सहारा भी खोखला सिद्ध हुआ था।…….परमेश्वर होता है……..
यह मानकर ही वह रावण की पूजा राम की तरह ही करने लगी।पर विजय का अहंकार बढ़ता ही चला गया।वह मीरा के इस समझौते को उसकी कमजोरी मान कर अत्याचारों की हदों को बढ़ाते चला गया।
समय पंख लगाकर गुजर गया और मीरा ने एक बेटे को जन्म दिया।यह सोचकर कि अब तो बेटा दिया है मैंने,शायद अब तो आत्मसम्मान से जीने को मिलेगा। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ।मीरा एक छत के आसरे और पुत्र को पिता के साये से वंचित ना करने की भावना से सब कुछ सहती चली गयी।इतने पर भी जब विजय के अहंकार की तुष्टि ना हो पायी तब मीरा ने तलाक लेने का निश्चय कर लिया।
आज जब तलाक के पेपर्स सामने थे तो वह समझ नहीं पा रही थी कि क्या करूँ????तभी समीप खड़ा पन्द्रह वर्षीय बेटा कह उठा,”आप क्यों इस रिश्ते को लेकर इतना सोच रहे हो????जीवन भर ये सबकुछ इसलिए सहन किया कि मुझे पिता का स्नेह मिल सके।
……….आप हर एक अत्याचार सहती रहीं।क्या कभी आपने ये बात सोची नहीं कि एक चरित्रहीन पिता के साये में रहकर मुझपर क्या असर होगा???ऐसे पिता से तो बिना पिता के जीवन श्रेष्ठ है।
…….मैंने यह कभी नहीं चाहा की आप हर रोज मरकर अपना जीवन जीये।….और आपने कैसे सोच लिया की मैं खुश रहूँगा????आपको तिल-तिल मरता देख मैं भी अंदर-ही-अंदर घुटते रहता हूँ।बस कह नहीं पाया यह सोचकर कि आपकी परेशानियाँ और नहीं बढ़ानी अब।

घर से बाहर भी रहकर आपकी चिंता लगी रहती है।।भय बना रहता है कि मेरी अनुपस्तिथि में घर में आपकी क्या दशा होगी????
क्या कभी आपने मेरी हालत समझने की कोशिश की है????जो इंसान आपसे बेवफाई कर सकता है वह भला बच्चों के प्रति अपना कर्तव्य कैसे निभाएगा??????
इस रिश्ते को तोड़कर सिर्फ आप ही आजाद नहीं होंगे,मैं भी सड़े-गले बेवजह के रिश्तों से मुक्ति पा लूँगा।आज से मैं आपका सहारा बनूँगा।

अपने पन्द्रह वर्ष के बेटे की समझदारी भरी बातें सुन असमंजस में पड़ी मीरा ने तुरंत आजादी के उन पेपर्स पर हस्ताक्षर कर दिया।
………सही मायने में आज मीरा गुलामी से आजाद हुई थी।

एक विचार बड़ी दृढ़ता से मन में समा गया————“अब कोई गम नहीं,कोई अफसोस नहीं,किसी बात का भय नहीं।किसी से सहायता,अपेक्षा या सहानुभूति की जरूरत नहीं।मेरा बेटा जो मेरे साथ है।”

….विवाह से पहले की आत्मविश्वासी मीरा का अक्स फिर एकबार मीराँ के भीतर जाग उठा था।

Language: Hindi
294 Views
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