आजादी का हक-पुस्तक समीक्षा
दुनिया में हर इन्सान की कोई न कोई कहानी होती है, किसी की कहानी समाज के सामने आती है तो वह विशेष रूप में प्रदर्शित होती है तो कोई परदे में छुपे रहस्य की तरह कुछ लोगों की यादें बन जाती हैं। प्रस्तुत कहानी-संग्रह ‘आजादी का हक’ में कहानीकार
डॉ. देवकान्ता शर्मा ने जिन पहलुओं को दर्शाया है, वे पहलू हर रोज हर इन्सान के सामने घटित होते हैं। लेखिका द्वारा रचित कहानियाँ केवल पढऩे ही नहीं बल्कि अंतर्चक्षुओं द्वारा दर्शनीय व मनन योग्य भी हैं। अनमोल शब्दों को पिरोकर कहानी के रूप में पेशकश ‘आजादी का हक’ में डॉ. देवकान्ता शर्मा द्वारा कुल ग्यारह कहानियाँ शामिल हैं।
संग्रह की प्रथम कड़ी ‘आजादी का हक’ जो कि एक छोटे-से ग्रामीण परिवेश की झलक है, जहाँ ऊँच-नीच का भेदभाव है और समृद्ध व सम्पन्न परिवार उन लोगों से दूरियाँ बनाकर रखते हैं, जिनको वे अपने बराबर का नहीं समझते। कहानी में तब एक दिलचस्प मोड़ आता है जब वहाँ एक अध्यापक दयाराम बच्चों को पढ़ाने के लिए आते हैं।
इसके अलावा शेष दस कहानियाँ ‘सूखे हुए आँसू’, ‘सिफारिश’, ‘उसकी याद में’, ‘खामोश बदरी’, ‘सिसकता वजूद’, ‘डल बुलाती है’, ‘ठहरा हुआ पानी’, ‘तीस सीढिय़ाँ’, ‘नासूर’ एवं ‘दर्द के द्वार’ भी
अपने-आप में बेमिसाल हैं। अनमोल कहानी-संग्रह की अन्तिम कहानी
‘दर्द के द्वार’ पढ़ते-पढ़ते आँखें भर आती हैं। उपयुक्त कहानी में एक माँ अपने बच्चे को हद से ज्यादा प्यार करती है और वह चाहते हुए भी अपना दर्द उसके समक्ष व्यक्त नहीं कर सकती। जब सब कुछ बताने का समय आता है तब वह उससे व दुनिया से बहुत दूर जा चुकी होती है।
लेखिका डॉ. देवकान्ता शर्मा ने अपनी लेखनी में जिन पात्रों को शामिल किया है। वह रोचक एवं पठनीय हैं तथा पाठक को उन्नति एवं बदलाव की और सोचने का मार्ग प्रशस्त करती हैं।
मनोज अरोड़ा
लेखक, समीक्षक एवं सम्पादक
साहित्यागार, जयपुर