एक आज़ाद परिंदा
बुलंदियां छूने में
नाकाम एक परिंदा
अहले-चमन में
बदनाम एक परिंदा…
(१)
पूरी कोशिश तो की
हमने परवाज़ की
लेकर मरा होंठों पर
मुस्कान एक परिंदा…
(२)
रेंगते हुए कीड़ों में
और क्या पा सकता
अब इससे बेहतर
मुकाम एक परिंदा…
(३)
आंसुओं में अपने
ख़ून को मिलाकर
लिखता रहा ताउम्र
दास्तान एक परिंदा…
(४)
सो गया चुपचाप
धरती की गोद में
आज ताकता हुआ
आसमान एक परिंदा…
(५)
उसूलों की दुनिया में
जज़्बात के पीछे
हो गया फिर से
कुर्बान एक परिंदा…
(६)
मौत की वादी में
ज़िंदादिली से जीकर
ज़िंदगी का दे गया
पैग़ाम एक परिंदा…
(७)
आख़िरी हिचकी तक
अपने गुलिस्तां का
चाहता था कोई और
अंज़ाम एक परिंदा…
(८)
अपनों का जो मिलता
साथ उसे थोड़ा-सा
ख़्वाबों को चढ़ा देता
परवान एक परिंदा…
(९)
दिल की तसल्ली के लिए
फ़िलहाल इतना काफ़ी
अपने आप पर नहीं
पशेमान एक परिंदा…
(१०)
ख़ुद को मिला ज़हर
गीतों में लौटाकर
लेता रहा रक़ीबों से
इंतक़ाम एक परिंदा…
#गीतकार
शेखर चंद्र मित्रा
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