आज़ादी का परचम
केसरी श्वेत हरा संग संग लहरा रहे
एकता का अमृत कलश छलका रहे
नित प्रगति का सोपान चढ़ते जा रहे
अमन चैन शांति का बिगुल बजवा दो
घर घर आज़ादी का परचम फहरा दो
सर पर छत नीचे खेत हो खलिहान हो
तन पर कपड़ा हर घर दो मुट्ठी धान हो
अपनी मिट्टी पहने सोने का परिधान हो
सोने की चिड़िया पंख और फैला दो
घर घर आज़ादी का परचम फहरा दो
हूँ हूँ हुंकार रहा सरहद पर वीर सेनानी
दुश्मन पर फट पड़ा वो बादल तूफ़ानी
मारूँगा या मर जाऊँगा मन में है ठानी
नही झुकेगा सर दुनिया को बतला दो
घर घर आज़ादी का परचम फहरा दो
रेखांकन।रेखा
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