चौथ का चांद
चलो आज उस चाँद में अपने चाँद को खोया जाए
ज़िन्दगी के आसमान में कुछ तारों को बोया जाए !
इंतज़ार में है चाँद के, मुस्कुराती आँखों का एक सपना
समाया आसमान के चाँद में, बैठा वहां कोई अपना !
खुशबू मेहँदी की बसी है अब तक इन साँसों में
सुर्ख रंग अब तक रचा है उन बेताब आँखों में !
खोए चाँद के उस ख्वाब को अब आस न बंधा
चलो अर्घ्य दे अश्कों का उस ख्वाब को धोया जाए !
ए चाँद , तेरे दीदार को कोई बहुत तरसा तो होगा
छिपा मेरे चाँद को मेघ में ,आसमान भी बरसा तो होगा !
रंग बहुत बदल गए हैं आज इन्द्रधनुष के तो क्या ?
चलो ज़िन्दगी की आँखों में काजल ही लगाया जाए !
गुफ़्तगू हुई कुछ आसमान के चाँद से अभी
हँस पड़ी ज़िन्दगी जो “चाँद” ने अपनी कही !
रूह-ए-ज़िन्दगी बनकर रहे जो साथ हर घड़ी
क्यों उसे ‘चौथ का चाँद’ बना फिर रोया जाए !
———–डॉ .सीमा(copyright)