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21 Apr 2024 · 1 min read

आजकल / (नवगीत)

खेत हँसियों से
कटते नहीं आजकल ।

रात बेगार-सी
दिन है भारी बहुत ।
चल रही भेद की
रोज़ आरी बहुत ।

फूल ख़ुशियों के
खिलते नहीं आजकल ।

हार्वेस्टर चले
और रीपर चले ।
पेट मजदूर का
आग जैसा जले ।

ज़ख्म-नासूर
भरते नहीं आजकल ।

बैल बेकार हैं
गाय भूखी बहुत ।
है नदी रोज़गारों
की सूखी बहुत ।

काम खोजे से
मिलते नहीं आजकल ।

मौथली है कुदाली
औ’ मृत फावड़े ।
स्वप्न मजदूर के
सब अधूरे पड़े ।

खड्ड पाटे से
पटते नहीं आजकल ।
०००
— ईश्वर दयाल गोस्वामी
छिरारी(रहली),सागर
मध्यप्रदेश-470227
मो.-8463884927

Language: Hindi
Tag: गीत
3 Likes · 2 Comments · 243 Views

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