“आजकल औरतों का जो पहनावा है ll
“आजकल औरतों का जो पहनावा है ll
जिस्म ढकने के नाम पर दिखावा है ll
सच्चा प्यार सिर्फ माँ बाप करते हैं,
इसके अलावा सब ढोंग है, छलावा है ll
कहीं न कहीं गलती सभी कर रहे हैं,
क्या किसी एक को भी पछतावा है ll
घर के पुरूषों को असहज तो लगता होगा,
मगर औरतों से बोल नही पाते, मेरा दावा है ll
नग्नता को संपन्नता समझने वालों को नहीं पता,
अंत में जलाकर खाक कर देगी, सोहरत लावा है ll”
यह कविता सभी के लिए नहीं, कुछ विशेष के लिए है