आघात
दोहा
नहीं सहन करते यहाँ, छोटी सी भी बात
संबंधी करते स्वयं ,संबंधों पर घात ।।1
काज पड़े जब पूछते, दिन में बारंबार ।
बने काज पर कौन तू ,हूँ मैं सूबेदार ।।2
धीर नहीं मन में कहीं ,उमड़ा नित तूफान ।
लिप्सा पीछे भागती ,देकर अपनी जान ।।3
गठरी भारी है लदी ,तोड़ रही गलबंध ।
वमन करे विष जीभ है , लिए लिजलिजा कंध ।।4
पीट रहे छाती भली ,बातों पर दे जोर ।
अंतर् में है खोखला ,बेजा करते शोर ।।5
सब कुछ सबको चाहिए ,नयन कल्पना साज ।
भाव भरे संसार में ,चढ़ी नासिका नाज ।।6
स्वारथ का सच देखिए ,बना रहे हैं दास ।
नेम धरम भूला हृदय ,तोड़ रहे विश्वास ।।7
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’
वाराणसी ©®
21/9/2022