आग
आग लगी थी चारों ओर सब खड़े तमाशा देख रहे थे ,
घर जला था बिचारे का सब अपने हाथ सेंक रहे थे ।
एक एक कर खाक हुए जा रहे थे उसके सारे सपने,
हार कर बैठा ही था कि सब उस पर पानी फेंक रहे थे ।
टूटी उम्मीद लिए बैठा था, वो सब कुछ हार चुका था,
सर पकडकर बैठा था वो अपना और लोग देख रहे थे।