आग वो कैसे बुझेगी
जो किनारों संग पली हो
वो भंवर से क्या डरेगी
आंधियां जिसका मसीहा
आग वो कैसे बुझेगी…
पंख जो कतरे गए थे
देख लो फिर आ गए हैं,
पंछियों के काफ़िलें
अंबर तलक फिर छा गए हैं,
जिंदगी दरिया नहीं
इस बार तो सागर बनेगी
आंधियां जिसका मसीहा
आग वो कैसे बुझेगी…
बंदिशों पर आपकी
अपना हुनर कुर्बान कर,
है नहीं मंजूर अब
चोंगा फर्ज़ के नाम पर,
दामिनी के मान से
पहले यहाँ सत्ता गिरेगी
आंधियां जिसका मसीहा
आग वो कैसे बुझेगी…
कोख में जिसने संभाला
राम को भी श्याम को भी,
छाती से अमृत पिलाया
सृष्टि के भगवान को भी,
क्यूँ भला हर बार
सीता की तरफ उंगली उठेगी
आंधियां जिसका मसीहा
आग वो कैसे बुझेगी…
26/03/2020
रिया ‘प्रहेलिका’