आग लगा जो स्वार्थी, रहे रोटियां सेंक …: दोहे
समसामयिक दोहे:
गर्म खून को देखकर, रक्त हो गया गर्म.
आग बना जो दें हवा, वे कितने बेशर्म..
मारपीट अति क्रूरता, अच्छा नहीं जूनून.
न्याय व्यवस्था है अभी, कायम है क़ानून..
उसे कहें इंसान क्या? गाय रहा जो मार.
पशुओं के भी साथ हो, न्यायोचित व्यवहार..
सी० बी० आई० जांच के, अब आदेश प्रचंड.
जो भी दोषी हैं यहाँ, उन्हें मिलेगा दंड..
बसें जलाते क्यों यहाँ, हानि हुई अतिरेक.
राजनीति के स्वार्थ में, खोयें नहीं विवेक..
आग लगा जो स्वार्थी, रहे रोटियां सेंक.
उनको यही सलाह है, कार्य करें कुछ नेक..
गो हत्यारे थे सभी, दिखते जो मासूम.
रपट कह रही लैब की, गयी दादरी घूम..
राजनीति जो कर रहे, ओढ़े उजली खाल.
वही धुले हैं दूध के अंदर काला माल..
नफरत से हों दूरियां, दोहों का यह सार.
मित्र करें सत्कर्म ही, सदा मिलेगा प्यार..
सप्रेम…
–इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर’