आग न लाओ भाइयो किसान
आग न लाओ भाइयो किसान
************************
सुनो जी दो टूक दे जरा ध्यान,
आग न लाओ भाईयों किसान।
विनती करता है पंछी बैठा,
आग जलाना काम है कैसा,
जल जाता नीड़ निवास स्थान।
सुनो जी दी तुक दे जरा ध्यान।
जीव जंतु का पेड़ है ठिकाना,
छाँव में बैठता राही अंजाना,
होता भारी भरकम नुकसान।
सुनो जी दो टूक दे जरा ध्यान।
सुन लो ज़रा जीवों की पुकार,
जलते हुए करे चीख चीत्कार,
करो जरा जीवन पर एहसान।
सुनो जी दो टूक दे जरा ध्यान।
किसको सुनाएं पीड़ित हाल,
जीना दुर्लभ हाल हो बेहाल,
रह जाते मात्र सामने निशान।
सुनो जी दो टूक दे जरा ध्यान।
संग तेरे भी हो गर ऐसा कार,
पता चल जाए क्या होती मार,
छड़ो कुकृत्य तुम बनो महान।
सुनो जी दो टूक दे जरा ध्यान।
काश कोई बने सख्त कानून,
सजा मिले जो करते हैं खून,
कीमती होती सभी की जान।
सुनो जी दो टूक दे जरा ध्यान।
मनसीरत हालत देख मजबूर,
ये मानव तेरा कैसा है दस्तूर,
दो उनको भी जीने का जहान।
सुनो जी दो टूक दे जरा ध्यान।
सुनो जी दो टूक दे जरा ध्यान।
आग न लाओ भाईयो किसान।
***********************
सुखविन्द्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)