आगे बढ़ रही
कुण्डलिया
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हर पल आगे बढ़ रही, लिए मधुर संगीत।
सबकी प्यास बुझा रही, है सबकी प्रिय मीत।
है सबकी प्रिय मीत, नदी की लीला अनुपम।
सबको करती तृप्त, सुनाती प्रिय सुर सरगम।
कहते वैद्य सुरेन्द्र, रहे गति में यह अविरल।
मधुर कर्णप्रिय शब्द, गूंजते रहते हर पल।
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अति पावन है विश्व में, गंगा की पहचान।
भक्ति भावना से यहां, सब करते हैं स्नान।
सब करते हैं स्नान, रीत है बहुत पुरातन।
इसके तट पर तीर्थ, अनेकों हैं मनभावन।
कहते वैद्य सुरेन्द्र, श्रेष्ठ है धर्म सनातन।
हर मन में विश्वास, गहन शुभ है अति पावन।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य