आखिर हम कब तक सहें….: छंद कुण्डलिया
छंद कुंडलिया
(दोहा +रोला, प्रारंभिक व अंतिम शब्द एक ही)
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(पीड़ितों की और से….)
आखिर हम कब तक सहें, आतंकी के वार.
मार गिराया जो इसे, करता अत्याचार.
करता अत्याचार, समर्थन में गद्दारी.
खुलकर आयी भीड़, पाक झंडा ले भारी.
चुप बैठी सरकार, मात्र वोटों की खातिर.
हम भी हैं तैयार, सहेगें कब तक आखिर..
(निष्कर्ष….)
आतंकी मानव नहीं, दानव हैं ये जोंक.
निपटाकर फ़ौरन इन्हें, दें भट्ठी में झोंक.
दें भट्ठी में झोंक. राख तक मिले न बाकी.
जो ले इनका पक्ष, काट दे वर्दी खाकी.
गद्दारों की भीड़, बने यदि पागल सनकी,
घातक बम दें फोड़, समझ असली आतंकी..
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प्रस्तुति–इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर’