आखिर रायता फैल ही गया ….
आज उसने बहुत मनोयोग से बूंदी का रायता बनाया था । बहुत दिनों के बाद ननद-ननदोई घर आये थे । रायते की सौंधी खुश्बू से डायनिंग हॉल महक रहा था । रात को भोजन के लिए सभी परिजन बैठे । डायनिंग टेबल पर रखा रायता देखकर सभी के चेहरे खिल उठे । उसने भी उत्साह से कटोरी में रायता कर सभी की थाली में रख दिया । ….पर यह क्या ..ससुर जी ने जैसे ही एक चम्मच रायता मुंह में डाला … कहने लगे – बहू, क्या आज रायते में हींग -जीरे का छोंक नहीं लगाया ? बस,यह सुनते ही सबके चेहरे के भाव बदल गए और शुरू हो गए टीका- टिप्पणी करने । सासू मां बोली – मुझे तो नमक थोड़ा कम लग रहा है । बहू …जरा नमक तो लाना । जेठ जी कहां चुप बैठने वाले थे । बोल उठे — रायते में थोड़ा सूखा पुदीना और डाल दिया जाता तो आनन्द आ जाता। नमक-मिर्च लगाकर हर बात को इधर से उधर करने वाली जेठानी जी ऐसा मौका क्यों हाथ से जाने देतीं । कहने लगीं मुझे तो रायते में तब तक मजा ही नहीं आता जब तक उसमें मिर्च का छोंक न लगा हो । ननद जी को भी आज बहुत दिन बाद मौका मिला था — अजी, हमारे इनको तो बूंदी का रायता पसन्द ही नहीं है । मैं तो हमेशा आलू -प्याज का रायता बनाती हूं । अब बारी देवर जी की थी । बोले – भाभी , रायता तो स्वादिष्ट है लेकिन गाढ़ा बहुत है । रायते का मजा खाने में नहीं पीने में आता है । रायता फैल चुका था …. वह कभी कटोरियों में रखे रायते को, कभी लोगों की भाव भंगिमाओं को देख रही थी और पति देव उसे तीखी नजरों से घूर रहे थे ।
✍️ डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
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