आकाश और धरा
आकाश और धरा
‘आकाश बेटे, मुझे तुमसे यह उम्मीद न थी, तुम तो समझदार हो, पढ़े-लिखे हो, इतनी बड़ी कम्पनी में काम कर रहे हो, और तुमने यह फैसला ले लिया’ आकाश के पिता ने बोलना जारी रखा ‘तुम्हारे इस फैसले से मुझे बहुत निराशा हुई है, एक बार फिर सोच लो, अभी वक्त है, फैसला बदला जा सकता है।’
‘पापा, मैं आपका सम्मान करता हूँ और आपकी भावनाओं की कद्र करता हूँ पर यह फैसला मैंने सोच समझ कर लिया है, मैं इसे नहीं बदल सकता, चाहे आप इसे मेरी नाफरमानी समझिए, मैंने धरा को चाहा है और मैं उसी से विवाह करूँगा, मैंने उसके साथ जीवन बिताना है’ आकाश ने संयत होकर जवाब दिया।
पिताजी ‘कम से कम इतना तो देखा होता है कि तुम्हारा रंग कितना साफ है, सभी तुम्हें गोरा कहते हैं, धरा का रंग सांवला है और बहुत ज्यादा सांवला, तुम्हें आगे बढ़ने से पहले इस पहलू पर विचार करना चाहिए था। तुम इतने समझदार होकर यह भी न समझ पाए कि यह फिज़िकल मैच भी नहीं है, उन्नीस-बीस का फर्क चल जाता है पर यह तो रात और दिन का फर्क है। फिर धरा के एक कान की संरचना भी सामान्य नहीं है। तुमने क्या सोचकर फैसला लिया है। मुझे तुम्हारे इस फैसले पर बहुत गुस्सा आ रहा है। आज शाम को तुम्हारी मां शांति तुम्हारी नानी के घर से वापिस आ रही है। इकट्ठे फिर बात करेंगे।
शाम को खाने की मेज़ पर सामान्य बातें होती रहीं और जैसे ही खाना समाप्त हुआ तो मीठे के स्थान पर पिताजी के मुँह में सुबह वाली बात का कसैला स्वाद उतर आया। परेशान तो वह खाना खाते ही नज़र आ रहे थे परन्तु तब कुछ बोले नहीं यह सोचकर कि सभी आराम से खाना खा लें तो बात छेड़ी जायेगी। आकाश भी खाना खाकर उठने वाला था कि पिताजी का आदेश हुआ ‘रुको आकाश, ज़रूरी बात करनी है।’ मेज पर से खाली बर्तन उठाते उठाते मां के हाथ भी रुक गए। ‘तुम बर्तन रसोईघर में रखकर यहां आओ, तुमसे भी कुछ ज़रूरी बात करनी है’ पिताजी ने कहा। वैसे तो घर में बिना कहे ही कितनी बातें होती रहती थीं पर यह कहना कि ‘जरूरी बात करनी है’ शान्ति के पेट में मरोड़ पैदा कर गया था। आकाश तो समझ ही चुका था। वह चुपचाप बैठ गया। मां के सधे हुए हाथ कांपने लगे थे। एक दो बार तो थाली से कटोरी गिरते गिरते बची। पर जैसे तैसे खुद को संभाला और सभी बर्तन रसोईघर में रखकर आ गई।
मां पिताजी की आंखों को पढ़ने की कोशिश करने लगीं। वैसे तो आकाश के बड़े होने तक वह पिताजी को भलीभांति समझ चुकी थीं। पर आज जैसा माहौल मां के लिए भी नया था। बार-बार साड़ी के पल्लू से अपने माथे को पोंछ रहीं थीं। अनजाने भय से माथे पर पसीना आए जा रहा था। ‘क्या बात है, तबियत तो ठीक है न’ पिताजी ने पूछा। ‘हां … हां … बिल्कुल ठीक है, वो रसोईघर में ज़रा गर्मी थी और अभी अभी खाना खाया है तो भारीपन सा लग रहा है, बस कोई और बात नहीं’ मां ने जवाब दिया। यह तो तरीका था पिताजी का, बात को शुरू करने का।
‘तुम्हारे लाडले ने गजब काम किया है’ पिताजी ने व्यंगात्मक लहजे मंे कहा। किसी अनिष्ट की आशंका मन में उपजाते हुए मां ने फिर भी पूछ लिया ‘आकाश ने क्या किया है?’ ‘आकाश ने हमारे घर की धरती में भूचाल ला दिया है’ पिताजी का स्वर कठोर हो चुका था जैसे शहनशाह अकबर राजकुमार सलीम के बारे में जोधाबाई से कुछ कह रहे हों। ‘साफ-साफ बताइये, मेरा दिल बैठा जा रहा है’ मां ने फिर कहा। ‘तुम्हारे लाडले आकाश को, दिन के उजाले को, रात्रि की कालिमा से प्यार हो गया है और ये उसी से विवाह करने को अड़े हैं, क्या कभी दिन और रात का विवाह सुना है?’ पिताजी की आंखें लाल हो चुकी थीं। ‘मैं कहती हूं साफ साफ बताइये और पहेलियां न बुझाइये’ मां भी अब सख्त होती नज़र आ रही थीं।
‘आकाश को अत्यंत सांवले रंग की एक लड़की धरा से प्यार हो गया है और जब मैंने इससे अपने विचार पर फिर से विचार करने को कहा तो जनाब कहते हैं कि मेरा फैसला अटल है, अब तुम्हीं बताओ कि गोरे-चिट्टे आकाश का ब्याह अति सांवली धरा से हो, क्या यह ठीक मैच है?’ मां थोड़ी देर खामोश हो गई थीं। ‘और तो और उसके एक कान की संरचना भी असामान्य है’ पिताजी ने अपनी बात में जोड़ा। पहले मां खामोश हुई और अब वातावरण में खामोशी छा गई थी। कुछ देर बाद मां ने खामोशी तोड़ी ‘धरा किस परिवार से है और कहां तक पढ़ी है और क्या करती है?’ ‘अरे यह सब पूछ कर क्या होगा, क्या उसका रंग बदल जायेगा?’ पिताजी ने बीच में टोका। आकाश ने धरा के परिवार का विवरण देते हुए बताया ‘मां, धरा बहुत पढ़ी-लिखी और समझदार लड़की है, सौम्य है, शान्त है और उसके चेहरे पर मुस्कुराहट छायी रहती है, बड़ों का सम्मान करती है, उसे किसी भी प्रकार का दंभ नहीं है और उसके यही गुण मुझे भा गए हैं। वह एक अच्छी कम्पनी में ऊँचे पद पर कार्य करती है।’ ‘ठीक है’ मां बोलीं। ‘क्या ठीक है?’ पिताजी फिर गरजे।
‘आप तो हिन्दी साहित्य के विद्वान हैं और न जाने कितने महान लेखकों को आपने पढ़ा है और आप अक्सर उनकी रचनाओं के उदाहरण दिया करते हैं..’ ‘अरे उससे इसका क्या लेना देना’ पिताजी ने बात बीच में काट दी। ‘आप धैर्य से सुनिये, आप ही ने बंगाली कथाकार बिमल मित्र की कहानी ‘सांवली बहू’ के विषय में बताया था जिसमें एक ऐसी स्त्री की कहानी थी जिसे विवाह के पहले ही दिन सिर्फ इसलिए ठुकरा दिया गया था क्योंकि वह सांवली थी। यह कथा सुनाते सुनाते आपको कितना क्रोध आया था और आप एक क्रांतिकारी की तरह बिफर उठे थे। आपका मन किया था कि उस कथा के दूल्हे को जाकर दो झापड़ लगा दें और कहंे कि रंग में क्या रखा है मूर्ख, उसके गुणों पर ध्यान दे। आपने ही साहित्यिक चर्चा में भाग लेते हुए स्टेज पर कहा था ‘हमारे देश के युवाओं को क्या होता जा रहा है। वे भीतरी सौंदर्य के स्थान पर बाहरी सौंदर्य की पूजा करने लगे हैं, उसकी ओर आकर्षित होने लगे हैं। मानव जाति ईश्वर की बनायी गई बेहतरीन रचना है। हमारे नटखट नन्दलाला भी तो सांवले थे जिन्होंने एक युग की स्थापना की। ऐसी ही एक चर्चा में आपने बताया कि कालिदास की रचना की नायिका शकुंतला भी श्याम वर्ण थी और इसी तरह मेघदूत की यक्षिणी का सौंदर्य भी गेहुंअे रंग का था। हिन्दी के न जाने कितने मूर्धन्य कथाकारों की नायिकाएं सांवली थीं। चाहे वह मुंशी प्रेमचन्द हों या रवींद्रनाथ टैगोर ….‘
‘रुको, रुको, तुमने तो रेलगाड़ी ही चला दी है, ये सब कथा कहानियां हैं, इतिहास की गाथाएं हैं, हम साधारण परिवार के हैं, आकाश हमारी पूंजी है, हमें तो यह ध्यान रखना पड़ेगा। रिश्तेदार क्या कहेंगे, मित्रगण क्या कहेंगे?’ पिताजी का स्वर कुछ नीचा हुआ था।
‘आप एक साहित्यकार हैं, शब्दों की रचना करते हैं, आपके शब्द लोगों के हृदय को छू जाते हैं, आपने अपनी रचनाओं में हमेशा ही भीतरी सौंदर्य को महत्व दिया है। आप कहां रंग और संरचना जैसी बातें करने लगे?’ मां स्थिति को भांपकर कहती रहीं ‘ये कथाएं, ये कहानियां, ये इतिहास कैसे बनते हैं, क्यों आप एक विद्वान होने के बाद, इन कथाओं के मूल्य को जानने के बाद कमज़ोर पड़ गए, आपके विचारों में शिथिलता क्यों आ गई, आप रामधारी सिंह दिनकर से प्रभावित हैं, आपने महादेवी वर्मा को पढ़ा है, आपने मुंशी प्रेमचन्द को पढ़ा है, आपने रवीन्द्रनाथ टैगोर को पढ़ा है, आपने सुमित्रानन्दन पन्त को पढ़ा है, तो आज आपके मन में ऐसी हलचल क्यों? मुझे तो गर्व है आकाश पर जिसने अपने फैसले से हमारा मस्तक आकाश की ऊँचाई पर पहुंचा दिया है। आपको तो गर्व होना चाहिए कि आपके परिवार में एक ऐसा आकाश है जो वास्तव में उबड़ खाबड़ सांवली सलोनी धरा से प्रेम करता है। क्या आप नहीं चाहते कि हमारा आकाश धरा से विवाह करके एक इतिहास बनाये!’
पिताजी कुर्सी से उठे और उन्होंने आकाश को गले लगाते हुए मां की ओर देखा तो उन्हें मां की आंखों में आंसू नज़र आये। आज आकाश के पिताजी को आकाश की मां पर गर्व हो रहा था और वे भी जेब में से रुमाल ढूंढने लगे थे।