आकस्मिक तबादला
आकस्मिक तबादला
शहर की इकलौती साहित्यिक संस्था की मासिक काव्य गोष्ठी में रेलवे के कर्मचारी विजय विरोधिया ने कविता सुनाई।
तालियों की गड़गड़ाहट से सभागार गूंज उठा। खूब वाहवाही लूटी। उसकी कविता तमाम राजकीय ढकोसलों, भ्रष्टाचार, जाति-धर्म की राजनीति की पोल-खोल रही थी। उसकी कविता चर्चा का विषय बन गई। विडिओ क्लिप सोशल साइट्स पर वायरल हो गई। जिसे खूब सराहा गया।
अगली काव्य गोष्ठी में विजय विरोधिया नजर नहीं आए। पूछने पर पता चला कि उनका तो पिछले महीने ही कहीं दूर-दराज आकस्मिक तबादला हो गया।
-विनोद सिल्ला