**आकर्षण**
बस खुलने वाली थी । रवि अपनी किताब ( उपन्यास ) निकाल लिया ।
“पढते हुए सफर आराम से कट जाएगा”–रवि मन ही मन ।
तभी एक भीनी सी खुशबू आयी । रवि ने देखा
एक सुन्दर सी स्त्री बस में चढ़ी है ।
रवि किताब का पन्ना पलटने लगा । तभी
“एक्सक्यूज मी” स्त्री की मधुर आवाज सुनाई दी ।
रवि उसकी तरफ मुखातिब होते हुए “हां ?”
स्त्री “क्या मैं यहाँ बैठ सकती हूँ ?”
“हां हां अवश्य ।”–रवि खिसकते हुए ।
“थैंक यू”–स्त्री मुस्कुराती हुई ।
रवि मन ही मन–“कितनी सुन्दर है । मेकप भी बहुत सलीके से । हंसमुख चेहरा। कितना आकर्षण है ।”
स्त्री अपने पर्स से मोबाईल निकाल कर उसमें व्यस्त हो गई ।
रवि उससे बात करने का बहाना ढूंढ रहा था– “बैठने में कोई दिक्कत तो नहीं ।”
“नो नो” चंचल नैन से देखती हुई ।
रवि–“बहुत बढिया मोबाईल है। मेरे दोस्त के पास यही है । इसका फोटो लाजवाब होता है ।”
स्त्री मुस्कान के साथ हां हां में सिर हिला रही थी ।
रवि ने किताब को तो बंद ही कर दिया था ।
कुछ देर के बाद रवि को झपकी लग गई ।
कंडक्टर की आवाज पर आंख खुली । वो जगह आ चुकी थी जहाँ रवि को उतरना था ।
बगल में देखा कि वो स्त्री नहीं है ।
“ओह, कहाँ उतरी पता भी नहीं चला । नाम, पता भी नहीं पूछा ।”–रवि मन ही मन बुदबुदाते हुए ।
नीचे उतर कर चाय की दुकान पर चाय पीने लगा । चाय पीकर जब पैसा देने के लिए पर्स ढूंढ़ा तो पर्स गायब । मोबाईल गायब ।
दुकान में जो गाना बज रहा था, वो रवि के कानों में गूंजने लगा “एक चतुर नार करके सिंगार…………..।”
–पूनम झा
कोटा राजस्थान
मोब० – 9414875654