आओ पर्यावरण बचाएं
आओ पर्यावरण बचाएं
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संरक्षण एक ऐसा शब्द है,यदि पर्यावरण का संरक्षण मानव के हाथ उचित या अनुचित रूप से लगे तो पर्यावरण का विकास व विनाश निश्चित है, मानव अपने सुख के लिए कुछ भी करने को तैयार है| वैदिक सनातनी धार्मिक ग्रंथों में,पर्यावरण के संबंध में अनेक महत्व बताए गए हैं |कहा जा सकता है कि भारत की आत्मा सुंदरता!भौतिक,सामाजिक, आर्थिक ,सौंदर्यात्मक व सांस्कृतिक पर्यावरण में बसी है|प्राकृतिक पर्यावरण को देवताओ की संज्ञा देकर पूजा गया है,सूर्य-चंद्रमा,अग्नि,पृथ्वी,आकाश,ग्रह,उपग्रह,वृक्ष,सरिता-सागर आदि की सुरक्षा का भी प्रवधान धार्मिक दृष्टि से था,औषधि और वनस्पतियों को ईश्वर का उपहार माना गया|जिसको काटना पाप माना गया है,वृक्ष के महत्व को लेकर मत्स्य पुराण ने कहा-दस कुओं के समान एक बावड़ी,दस बावड़ीयों के समान एक तालाब, दस तालाबों के समान एक पुत्र और दस पुत्रों के समान एक वृक्ष होता है| जिस प्रकार से पुत्र वंश का चिराग है,और कुल समाज देश परिवार का गौरव तो ठीक उसी प्रकार से वृक्ष! छाया ,फल-फूल,जीवन के लिए वरदान है, वृक्ष इंसान को नर्क जाने से बचाता है,इस बात की गवाही वाराह पुराण देता है- एक व्यक्ति जो एक-एक पीपल, नीम,बरगद तथा दस-दस फूल वाले वृक्ष या लताएं,दो-दो अनार संतरे ,पांच आम का वृक्ष लगाए वह नर्क नहीं जाता| वृक्ष हमें नर्क जाने से बचाएगा तो वहीं पर फल फूल छाया ईंधन व आक्सीजन प्रदान करता है,पर्यावरण सदैव मानव के लिए परमार्थी,लेकिन पर्यावरण के लिए मानव सदैव स्वार्थ ऊपर रखकर देखरेख किया ,पर्यावरण के लिए ज्ञान-विज्ञान नासूर हैं ,तो वहीं पर धर्म समाज, रीति-रिवाज,प्रथाएं,मान्यताएं,त्योहार संगठन में सम्मान की बातें मिलती हैं| पर स्वार्थी लोभी इंसान व्यक्तिगत हितों के कारण अभिशाप है|चिपको आंदोलन को कौन भूल सकता है, आंदोलन का घोषवाक्य आज भी प्रकृति प्रेमियों के सिर चढ़कर बोलता है
“क्या हैं जंगल के उपकार,
मिट्टी पानी और बयार|
मिट्टी पानी और बयार,
जिंदा रहने के आधार”||
जीवन के लिए सबसे बड़ा संदेश है,आज पर्यावरण की लूटी दशा उसी प्रकार से नजर आती है,जैसे पांडवों व कुल गुरूओं के रहते हुए द्रोपदी का चीर हरण हो रहा हो,इंधन इमारत,पेपर अनेकानेक कार्यों के लिए वृक्ष काटना ,खनन माफियाओं का साम्राज्य खड़ा होना,जल प्रदूषण,वायु प्रदूषण,ध्वनि प्रदूषण से पर्यावरण के मूल भाव को नष्ट करना,आजकल के कौरवों का काम हो गया है|एक तरफ पर्यावरण पढ़ाया जा रहा है ,तो वहीं पर महंगी शिक्षा,रोजगार परक ना होने के कारण,गरीब व शहरी मलिन बस्ती के लोगों के लिए ऐसी शिक्षा से कोई मतलब नहीं है,सभी ने महामारी को देखा ऑक्सीजन की कमी सहा है! फिर इतना इंसान हैवान क्यों ?पागल मूर्ख क्यों है? आस्था व त्यौहार रीति-रिवाज मान्यताओं के नाम पर इतना मूर्खता पूर्ण व्यवहार क्यों कर रहा है?उदाहरण के लिए होली के नाम पर हजारों छोटे वृक्ष काट कर होलिका का लगाना यह कैसा ज्ञान है?जबकि प्रशासनिक तौर पर वृक्ष काटना गुनाह है,और धार्मिक दृष्टि से पाप है|यह प्रथा बंद होनी चाहिए,होलिका के बाद होली के दिन जल की बर्बादी अबीर गुलाल से शारीरिक समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं,शराब भांग के नशे में होकर यात्रा निकालना मानवता के खिलाफ है,यह एक कड़वा सच कि नशा करके होली के आड़ में स्त्रियों के सम्मान का शोषण करते है,और अमानवीय,अमर्यादित,मूर्खता, पागलपन,अशिक्षितों जैसा व्यवहार किया जाता है,जबरन अबीर गुलाल लगाना,अश्लील कामुक नजर से गले मिलना,बड़ा ही दुर्भाग्य है| कीचड़ गोबर कालिख लगाकर गंदगीपूर्ण तरीके से त्यौहार मनाना, मानवीय सभ्यता के खिलाफ है,त्योहार मनाना ठीक है लेकिन मर्यादा,नैतिकता,आदर्श,श्रेष्ठता शिक्षा का मूल भाव नष्ट ना हो ,यह विशेष ध्यान रखाना चाहिए|जिससे सामाजिक पर्यावरण का मूल भाव साकार रूप धारण कर सकें,कपड़ा फार होली का रूप देखते ही मेरी रूह कांप जाती है|यह मानवीय व्यवहार के खिलाफ ही नहीं बल्किं बहुत ही शर्मनाक बात है|मनुष्य एक स्वयं सभ्यता का प्रतिबिंब है,धर्म ,संस्कार, नैतिकता ,आदर्श और परोपकार के स्रोतों के साथ ईश्वर का अंश भी है | इसिलिए मनुष्य को सभी मानवीय गुणों का खान कहा गया है| इस बार की होली या हर त्यौहार उत्सव में ,सभ्यता,स्वच्छता,मर्यादा, शिक्षा,स्वास्थ्य और संस्कार का पूर्ण ख्याल रहते हुए,भौतिक,सामाजिक,आर्थिक,
सौंदर्यात्मक,सांस्कृतिक पर्यावरण का ध्यान रखकर होली का त्योहार मनाया जाय,जिससे पर्यावरण को स्वच्छ रखा जा सके,और पर्यावरण मानव जीवन के लिए सदैव वरदान साबित हो|
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नाम-ऋषि कुमार ‘प्रभाकर’
पता-खजुरी खुर्द,तह.-कोरांव प्रयाग. उ. प्र