आओ जाओ मेरी बाहों में,कुछ लम्हों के लिए
कुछ लम्हें आये जिन्दगी में,कुछ लम्हों के लिये।
आज भी तरसते है हम,उन सब लम्हों के लिये ।।
तड़प रही हूं मै किस कदर, तुन्हे क्या ख़बर।
आओ जाओ मेरी बाहों में कुछ लम्हों के लिए।।
ख़ुदा ने हमसे कहा,कुछ तो मांग लो मुझ से।
मैंने कहा,बिताये लम्हें दे दो,कुछ लम्हों के लिये।।
मेरे मुक्कदर में आये थे आप,कुछ लम्हो के लिये ।
मैं सारी रात रोई, बिताये हुये उन लम्हों के लिये।।
आते नहीं लम्हे दुबारा जो बीत गये है जिन्दगी में ।
लम्हों से बोली,तुम तो आ जाओ एक लम्हे के लिये ।।
लम्हा लम्हा कर गुजर गयी,ये सारी मेरी जिन्दगी ।
ये जिन्दगी तरस रही है आखरी एक लम्हे के लिये ।।
उन्होंने कहा,बस आ जाओ बाँहों में एक लम्हे के लिये।
उनकी ख्वाइश पूरी न कर सकी उस एक लम्हे के लिये।।
रस्तोगी अर्ज करता है,कुछ लम्हे ही बचे है जिन्दगी में।
इसलिए कुछ लिख डालू,बीते हुये कुछ लम्हों के लिये।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम