*आओ चुपके से प्रभो, दो ऐसी सौगात (कुंडलिया)*
आओ चुपके से प्रभो, दो ऐसी सौगात (कुंडलिया)
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आओ चुपके से प्रभो , दो ऐसी सौगात
भीतर से लगने लगे , जैसे हुआ प्रभात
जैसे हुआ प्रभात ,जगे सब कुछ जो अपना
जगत लगे निस्सार , क्षुद्र हो जैसे सपना
कहते रवि कविराय , परम आनंद जगाओ
करूँ तुम्हारा ध्यान ,नाथ ! प्रियतम बन आओ
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451