आओ घन प्यारे
आओ घन प्यारे, धरा पुकारे,
प्यासे देखो तरु कबसे।
सावन में सारे, राह निहारे,
कृपा मेघ के कब बरसे।
है पपिहा व्याकुल,केकीआकुल,
कोकिल जियरा ना छलके।
है कागज नैया, ले शिशु भैया,
ताक रहे सरवर फलके।
बागन में झूले , कैसे झूलें,
सूरज की गरमी बरसे।
लाचार हवा है, धूप सवा है,
खूब विहसि धूल हरसे।
है सावन सूखा, मानव भूखा,
मौसम जस सूरत धरके।
मानुष मनमानी,प्रभु ने जानी,
देख रहे चुप हो करके।
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अशोक शर्मा,कुशीनगर,उ.प्र.