आओ कोरोना -कोरोना खेलें
आओ कोरोना -कोरोना खेलें
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आओ कोरोना कोरोना खेलें
झूठी – लंबी डिंगे पे लें
तुम ही बस घर से ना निकलो
ताकि हम सब कुछ ले लें
आओ कोरोना………….
शिक्षा में तब्दीली कर दें
जिसकी चाहे बदली कर दें
भूल गए एन.आर.सी. सारे
क्यों ना मंदिर नींव ही रखदें
वर्षों से इसके खातिर ही
हमने कितने पापड़ बेले
आओ करोना………
रेल बेच दो
जेल बेच दो
लाल किला
हर महल बेच दो
अच्छे दिनों की बातों में
सारी अच्छी चीज बेच दो
जनता से रोटी छीनों तुम
जीत के हंसकर खालो केले
आओ कोरोना………
स्टे होम -स्टेज सेव का
नारा जन -जन तक पहुंचाओ
लेकिन तुम बाहर आकर के
मंत्री बेच मंडी लगवाओ
कोरोना की आहट से
कितने भूखे -प्यासे मर गए
कितने पैदल चलते -चलते
खुद से ही लड़-लड कर मर गए
तुम हंस कर बैठे महलों में
जनता ने हीं दुःख है झेलें
आओ कोरोना……..
बलात्कार की बढ़ गई संख्या
जातिवाद का बज रहा ढंका
कहीं मंदिर पर डंडा बाजे
शुद्र नहीं मंदिर पर साजे
कहीं काम की मना जो कर दी
उसकी बुंग लट्ठों से भर दी
कहीं जला दिया जिंदो को
कहीं यातना जी भर झेलें
आओ कोरोना………
गरीब आदमी पकड़ा जाता
कोरोना में जकड़ा जाता
जब भी छींके थोड़ा खांसा
समझो उसको ढंग से फांसा
कोरोना के नाम पर भर्ती
जमकर घर की खाल उतरती
दो-चार दिन भर्ती रहकर जो
अंक गंवाकर वह मर जाता
अमित और शाह सरीखे
कोरोना से भी बच जाता
दवाई शायद अलग अलग है
अमीर बचाती गरीब ही जाता
कितने मजदूरों के यूं ही
खड़े हुए हैं तन्हा ठेले……..
आओ कोरोना कोरोना खेलें
जातिवाद में घुसे हुए हैं
नफरत दिल में ठूंसे हुए हैं
देश की चिंता नहीं किसी को
सच बोले जो सजा उसी को
चुप्पी एक दिन तोड़नी होगी
जीने की जिद छोड़नी होगी
क्यों ना कोई दरवाजे खोलें
आओ कोरोना कोरोना खेले
मंदिर का निर्माण करेंगे
कालेज सारे बंद करेंगे
रोजगार की वाट लगा कर
धंधे सारे बंद करेंगे
बाहर गए तो हो कोरोना
घर के अंदर भूखे रोना
बिल कोई ना माफ करेंगे
गरीब नहीं गरीब साफ करेंगे
जनता भूखी मरे तो मर जा
यह तो खाएंगे चावल छोले
आओ कोरोना कोरोना खेलें
इंकलाब की है आहट सी
बढ़ने लगी है कुछ चाहत सी
“सागर” देश की नब्ज टटोलो
शब्दों से सच खुल कर बोलो
मौत तो एक दिन आनी ही है
जान भी जालिम ये जानी है
क्यों ना सच को सच सच तोलें
आओ कोरोना कोरोना खेलें
मूल गीतकार,लेखक, चिंतक
बेख़ौफ़ शायर… डॉ. नरेश कुमार “सागर”
9149087291