आओ कृष्ण मुरारी आओ
है धरा ओज से उद्वेलित
पर मची हुई है हाहाकार,
आस यही अब आवे कोई
इस धरती का पालन हार।
भीषण हिमप्रकोप से आज
कॉप उठी जनता है सारी,
रास किसी को आती नही
स्वर्ग सरीखी धरा तुम्हारी।
सर्द रात यहां पर जारी
हिमनदी बनी त्रिपुरारी है,
आओ कृष्ण मुरारी आओ
अब गोवर्धन की बारी है।
उठा गोवर्धन को फिर से
अभय करो हम सबको ही,
हिमअसुरों की बाढ़ आ गई
निर्भय करे आप हमको जी।
त्याग राह अपनी चिरपरिचित
है आवेगों में हिमनदियाँ,
लग रहा है जैसे होगी समाप्त
यह तेरी अद्भुत सी दुनिया।
किया देर यदि सुनो मुरारी
हाथ नहीं कुछ पाओगे,
बस नरमुंडों की बाढ़ दिखेगी
जिसे रोक नहि पाओगे।
देर अभी भी हुई नहीं है
एक नजर तेरी जो हो जाय,
निर्मेष है दावा यह मेरा कि
प्रलय दूर हो भाग जाय।
निर्मेष