औरंगाबाद रेल दुर्घटना (कोरोना काल)
सिरहाने पे पट्रिया,पत्थरों की सेज थी
थक चुके थे कदम ,बस कुछ पलो की बात थी
बस सूर्य के किरण के आने का ही काम था
थक चुके भी कदम उठने को तैयार था
मार्ग था कठिन पर मगर मन में विश्वास था
कोसो की दूरियां बस कुछ पग दूर था
सहसा ही समय ठिठक गया पल में सब कुछ बदल गया
घर जाता इंसान सदा के लिए ही घर को चल दिया
तकती आंखो से केवल अश्रु ही निकल सके
मौन रहकर भी सब कुछ कह गए,कुछ सुने कुछ अनसुने से रह गए।
श्रमिक तो श्रमिक ही रह गए बिना कुछ कहे भी सब कुछ कह गए।