“आए बसन्त, फाग नघिचाने..!”
आए बसन्त, फाग नघिचाने…!
बौर लदे अमराइन, सरसौं पीत पुष्प मुसकाने,
करत भ्रमर गुन्जार चतुर्दिश, अगन हिया जु लगाने।
बहत बयार, जु अल्हड़ नारि, चली मदमस्त रिझाने,
कोयल कूकति, डारि, मनहुँ पिय गीत चली हु सुनाने।।
आए बसन्त, फाग नघिचाने…!
नन्दगाँव से चली गुजरिया, भोर भयो, बरसाने,
ठुमकति-लरजति, लचकि कमरिया, ग्वाल होत दीवाने।
बैठि कन्हाइ, कदम्ब की डारन, बाँसुरि छेड़ तराने,
कोमल श्यामल गात, अँगरखा पीत लगत जु सुहाने।।
आए बसन्त, फाग नघिचाने…!
गोरि जु बाँसुरि तान सुनत, तनि ठिठकति, मनु अनजाने,
गागरि, काँकरि, फोरि सखा सब, करि ठिठोलि हरसाने।
भीजि गई अँगिया सब छाछ, जु ग्वालिनि लगत लजाने,
आँखि तरेरि, रिसाइ, करति मुख लाल, लगत गरियाने।।
आए बसन्त, फाग नघिचाने…!
बैठि श्याम चुपचाप, न बोलत कछू, मनहिं मुसकाने,
देवन वृन्द निहाल भये लखि, पुष्प लगै बरसाने।
बरनि न “आशा” जात किलोल, करौं बिधि कौन बखाने,
फाग कै रँग मा चूर सबै जन, का बूढ़े, बचकाने…!
आए बसन्त, फाग नघिचाने….!
नघिचाने # क़रीब आ चुका है, is very near
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रचयिता-
Dr.asha kumar rastogi
M.D.(Medicine),DTCD
Ex.Senior Consultant Physician,district hospital, Moradabad.
Presently working as Consultant Physician and Cardiologist,sri Dwarika hospital,near sbi Muhamdi,dist Lakhimpur kheri U.P. 262804 M.9415559964