आई बरखा
आई बरखा
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चैत पर चढ़ बैठा जेठ
जेठ पर चढ़ बैठा आषाढ़
पुरवा बैठी बाट निहार
सीने पर चढ़ सावन बैठा
जैसे सबसे रूठा रूठा
कब आयेगी बरखा रानी
पछवा पूछै बारंबार
सूखी सारी ताल तलैया
सूख गई अब कोख कुँए की
बावली हुई सूखी बावली
कलकल करती नदिया बहती
रह गई जल की धार
बूँद बूँद को हर घट तरसे
सूख गया है नीर आंख का
ताकैं बदरा बारंबार
जंगल जंगल घूमे हाथी
लोमड़ सियार करें ताका झाँकी
जंगल प्यासा,नदिया प्यासी
सोन चिरैया ढूंढे भटकती
काग सयाने ने देख सुराही
डाले कंकड़ बारंबार
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राजेश’ललित’शर्मा