आईना
अदभुत और लाजबाब होता,
आईना दिल-सा साफ होता,
मेरा प्रतिरूप मुझे दिखाकर,
स्वयम् करता है सवाल,
पहचानो अपना असली रूप,
देख लो सुंदर खुद का प्रतिबिम्ब,
आईना दिखाता नहीं है झूठ,
रंग-रूप कद-काठी वजूद,
सुंदर हो या कुरूप,
वहीं होता है असली प्रतिरूप,
खूब निहारो सुंदर चेहरे को,
रूठो मत अगर लगे कुरूप ।
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बुद्ध प्रकाश,
मौदहा,
जिल- हमीरपुर।