आईना
” आईना ”
“मालू कहां हो तुम ?” बाहर से ही मालती की बचपन की सहेली दीपा ने आवाज़ देते हुए दरवाज़े पर दस्तक दी लेकिन दरवाज़ा खुला ही पाया। दरवाज़े के पटों को धकेलते हुए दीपा अंदर आ गई और दरवाज़े को बंद करती हुई अंदर की तरफ़ बढ़ते हुए फ़िर आवाज़ लगाई “मालू कहां हो ?”
बचपन से दोनों साथ साथ खेली बड़ी हुईं और ये साथ इतना प्रगाढ़ था कि दोनों जब तक दिन में एक दूसरे से मिल ना लें उन्हें चैन नहीं आता। मालती की माँ उसे बचपन में ही छोड़ कर चली गई थी । तब से मालती अपने पिता के साथ अकेली रहती थी, उसका और कोई भाई बहन भी ना था, इसलिये भी दीपा उसे अपनी बहन सी लगती थी और जब भी अकेली होती याँ तो खुद दीपा के घर चली जाती यां दीपा ही खुद उसके घर चली आती और दोनों घँटों बैठी बातें करती रहतीं। कभी गांव के पनघट पर जाकर बैठ जातीं और तालाब में पत्थर फेंकती रहतीं ।
दोनों 20 की उम्र पार चुकी थीं और समझदार हो गई थीं । दोनों सुंदर भी थीं इसलिए गांव के कुछ दिल फेंक लड़के अक्सर उन्हें बड़ी तरसी नज़रों से देखते थे। इस बात को दोनों जानती थीं मगर उन्होंने कभी किसी को घास ना डाली थी।
“अरे मालू कहां है ?” दीपा ने फिर आवाज़ लगाई।
“अरे दीपा आओ ” अचानक मालती के पिता की आवाज़ से दीपा ने पलट कर देखा
“अरे बाबा” दीपा भी मालती के पिता को बाबा ही कह कर पुकारती थी । “मालू कहां है ?”
“वो यहीं पंसारी की दुकान तक गयी है वहां से पास ही से सब्ज़ी लेती हुई आती ही होगी” कुर्सी को दीपा की तरफ़ सरकाते हुए बोले “तुम बैठो वो अभी आ जायेगी”
दीपा वहीं कुर्सी पर बैठ गई, ओमप्रकाश भी कुर्सी खींच कर उसके सामने बैठ गए।
कुछ देर चुप्पी रही दीपा को महसूस हुआ ओमप्रकाश उसकी तरफ़ एकटक देखे जा रहे थे । उसे ये बड़ा अजीब लग रहा था। उसने नज़रें झुकाए ही अपनी चुन्नी को ठीक से कंधों पर किया । लेकिन आज न जाने क्यूं उन नज़रों के सामने बैठने की हिम्मत नहीं हो रही थी उसकी ।
“दीपा तुम बड़ी सुंदर हो” ओमप्रकाश ने एकटक उसके चेहरे की तरफ़ देखते हुए अचानक से कहा
“बाबा मैं चलती हूं, बाद में आ जाऊंगी, जब मालू आ जाये” कहती हुई दीपा बिना ओमप्रकाश की तरफ़ देखे कुर्सी से उठ खड़ी हुई।
लेकिन अचानक दीपा का हाथ थामते हुए ओमप्रकाश ने उसे रोकते हुए कहा “अरे बैठो ना वो अभी आ जायेगी ”
“बाबा ये आप क्या कर रहे हैं ? मेरा हाथ छोड़िये” दीपा के माथे पर पसीने की बूंदे चमकने लगी थीं और दिल ज़ोर से धड़क रहा था ।
लेकिन ओमप्रकाश ने उसे ज़ोर से खींचते हुए कहा “आओ ना”
ओमप्रकाश ने इतनी जोर से दीपा का हाथ खींचा कि वो खुद को संभाल नहीं पाई और सीधे ओमप्रकाश की गोद में जा गिरी।
ओमप्रकाश ने उसके गालों पर हाथ लगाते हुए कहा “देखो कितनी सुंदर हो तुम”
“बाबा आपको शर्म आनी चाहिए मैं आपकी बेटी समान हूं” दीपा ओमप्रकाश की मजबूत पकड़ से छूटने का भरपूर प्रयास कर रही थी
“बेटी समान हो ना, बेटी तो नहीं हो” कहते हुए ओमप्रकाश ने दीपा की चुन्नी खींच कर परे फेंक दी।
“बाबा मैं आपके हाथ जोड़ती हूं, मुझे जाने दो” दीपा गिड़गिड़ा रही थी।
“अरे चली जाना थोड़ी देर रुक कर” ओमप्रकाश पर जैसे हैवानियत सवार थी
एक नाज़ुक सा परिंदा कसाई की मजबूत पकड़ से छुटने को अपने पंख फड़फड़ाता रहा, लेकिन कसाई ने अपनी पकड़ और अपने हथियार इतने पैने कर लिये थे कि उस परिंदे के पंखों ने थक हार के फड़फड़ाना बंद कर दिया। उस परिंदे की आवाज़ें मज़बूत हाथों ने दबा दीं और परिंदा छटपटाता रहा । कसाई अपना काम कर चुका था
अंदर आ कर दरवाज़े को बंद करती हुई मालती ने घर में प्रवेश किया और आते हुए बोलती जा रही थी
“बाबा आने में थोड़ी देर हो गई वो मौसी जी मिल गयीं थीं उन्हीं से बतियाते हुए देर हो गई” कहते हुए मालती अंदर कमरे में पहुंच गई। कमरे का नज़ारा देख कर वो वहीं स्तब्ध हो कर खड़ी रह गई।
दीपा नीचे फ़र्श पर पड़ी हुई थी फ़र्श पर खून के धब्बे और उसके बाबा अचानक मालती को सामने देख कर चौंक से गये थे।
“दीपू….!” अपने हाथ के थैले को वहीं फेंकते हुए मालती ने दीपा के करीब जाते हुए कहा “दीपू क्या हुआ ?”
लेकिन दीपा बस रो रही थी चिल्ला रही थी।
“बाबा क्या हुआ ?” मालती अपने पिता की तरफ़ देखती हुई चिल्लाई
“बेटी…बेटी ये जबर्दस्ती मेरे गले पड़ रही थी” हड़बड़ाते हुए ओमप्रकाश ने कहा
“झूठ बोलता है ये…दरिंदा” दर्द से कराहते हुए दीपा ने कहा, आज वो ये भूल चुकी थी कि वो अपनी बचपन की सहेली के पिता से बात कर रही थी, जिसे वो बाबा कहा करती थी।
“दीपू क्या हुआ बता ?” दीपा के सर पर हाथ घुमाते हुए मालती ने पूछा
दीपा ने सारी बात अपनी लड़खड़ाती आवाज़ में कह दी। सुन कर मालती स्तब्ध थी, वो नफ़रत भरी आंखों से अपने बाबा की तरफ़ देखते हुए बोली
“ये क्या किया बाबा तुमने ?”
“ये…. झूठ बोलती है” ओमप्रकाश ने चिल्लाते हुए कहा
“कुत्ते… दरिंदे…” दीपा चिल्लाई
लेकिन मालती सब समझ चुकी थी, दीपा की तरफ़ मुड़ते हुए बोली “दीपू तू चिंता ना कर, हम थाने जायेंगे, मेरे बाबा हैं तो क्या हुआ तू उठ दीपू” मालती ने दीपा को सहारा देते हुए उठाने की कोशिश की।
तभी अचानक मालती का हाथ पकड़ते हुए ओमप्रकाश दहाड़ा “ए…..तू थाने जाएगी, अपने बाबा के ख़िलाफ़ रपट लिखवाने ?”
“हां जाऊंगी, ऐसा वहशी इंसान मेरा बाबा नहीं हो सकता, जो अपनी बेटी के उम्र की लड़की के साथ…..” मालती कुछ बोल नहीं पाई उसकी आँखों से आंसू बह निकले।
“तू ज़्यादा चटर पटर ना कर तेरा भी यही हाल कर दूंगा” अचानक मालती की तरफ़ आंखें निकालता हुआ ओमप्रकाश चिल्लाया ।
मालती खड़ी होती हुई अपनी चुन्नी को उतार फेंकते हुए बोली “ले क्या करेगा ? तेरे सामने हूं मैं, दुनिया को भी पता चले एक मर्द पर जब हवस सवार होती है तो वो अंधा हो जाता है और कोई भी रिश्ता उसके लिये बेमानी हो जाता है” और अपनी बाहों को खोलती हुई बोली “दुनिया को दिखा दे कितना ताकतवर है तू, आज एक नहीं तू दूसरी बेटी का भी लहू बहा दे, दिखा दे अपनी मर्दानगी”
लेकिन ओमप्रकाश पर तो जैसे कोई भूत सवार था, वो मालती के बालों को पकड़ कर अपनी तरफ़ खींचते हुए चिल्लाया
“बहुत बोलती है तू, तुझे भी मज़ा चखाता हूं” कहते हुए वो मालती के गिरेबान को पकड़ने की कोशिश में हाथ आगे बढ़ाता उससे पहले चिल्ला कर लड़खड़ाता हुआ ज़मीन पर गिर के तड़पने लगा। उसकी पीठ पर छुरी धंसी हुई थी और लहू फव्वारे की तरह निकल रहा था ।
मालती ने नज़रें उठा कर देखा तो दीपा की आंखों से अंगारे बरस रहे थे लेकिन चेहरे पर एक सुकून था । दोनों की आंखें मिलीं और दीपा ने हाथ जोड़ कर रोते हुए मालती से कहा
“मुझे माफ़ कर दे मालू…अगर मैं ये नहीं करती तो आज बड़ा अनर्थ हो जाता”
“नहीं दीपू मुझे दुःख है इस बात का कि ऐसे दरिंदे को मैं अपना बाप कहती रही, ये चीज़ तो कभी भी हो सकती थी, क्योंकि मैं तो इस घर में अकेली ही रहती हूं” फ़िर अपने आंसुओं को पोंछते हुए बोली ” आज एक आईना टूट गया जिसकी आंखों में मैं खुद को देखा करती थी…….मुझे माफ़ कर देना दीपू आज मेरी दोस्ती की वजह से तेरा ये हाल हुआ” और गिड़गिड़ाती हुई दीपा के पांव में गिर पड़ी।
“मालू….” दोंनो न जाने कितनी देर एक दूसरे से लिपट कर रोती रहीं।
दूर कहीं शर्म के मारे सूरज भी छुप गया था, और रात के अंधेरे ने धरती पर अपना कब्ज़ा कर लिया था ।
ओमप्रकाश अब लाश में तबदील हो चुका था । उधर दीपा और मालती अपने आंसुओं को पोंछतीं हुईं एक दूसरे का हाथ थामे गांव के थाने की तरफ़ बढ़ी जा रही थीं ।
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