आईना पर चन्द अश’आर
न टूटकर ये फिर जुड़ा कभी
मिरा ये दिल था आईना कोई
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आईना टुकड़ों में बिखरा है यारो
फिर कहीं दिल कोई टूटा है यारो
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आईना देख, हैरां हूँ मैं आज फिर
शख़्स ये अजनबी,कौन है रू-ब-रू
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आई’ना टूटकर जिस तरह बिखरा है
क्या कभी आपका दिल भी यूँ टूटा है
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देखकर आईना, याद फिर आई ना
टूटकर हिज़्र में, रो पड़ा आई’ना*
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*अन्तिम शे’र में दूसरी पँक्ति के अंत में “आई’ना” बहुअर्थी है। यहाँ आई’ना— दर्पण (आई’ना) के लिए भी है और विरहा में डूबे (टूटे) प्रेमी के लिए (आई ना) भी।