आईना झूठ लगे
चेहरा देखूँ जब अपना नहीं होता यकिन
बहुत हैरान हूँ आज क्यूँ आईना झूठ लगे
बहुत हैरान हूँ……………
आईना देखा है बहुत मैने पहले भी मगर
आज देखूं मैं बार बार नहीं होता यकिन
बहुत हैरान हूँ मैं…………
करके श्रंगार किया खड़ा आईने के आगे
खुद को देखूं खुद पर नहीं होता यकिन
बहुत हैरान हूँ मैं…………
अपने ही घर में अजीब व्यवहार देखा है
किसी के प्यार पे अब नहीं होता यकिन
बहुत हैरान हूँ मैं………….
जन्म देकर पालते हैं जिसको माता पिता
बांध देते हैं यूँ बंधन में नहीं होता यकिन
बहुत हैरान हूँ मैं…………..
“विनोद”ये रीत और ये रस्म बता कैसी है
श्रंगार कर देते हैं विदा नहीं होता यकिन
बहुत हैरान हूँ मैं……………