*आंखों से जाम मुहब्बत का*
आंखों से जाम मुहब्बत का रोज़ पिलाती है l
पर न कभी कोई शाम हसीं साथ बिताती है l
जब वो शाम ए तसव्वुर में मिलने आती है,
मेरी हंसती खिलती हयात बिखर जाती है l
शोख़- ए – हवा बन यूं तेरी गली चले आते हैं,
जब तेरी ये पाज़ेब खनक खनक के बुलाती है l
बहुत खूब हैं ये झुमके,ये बेनी की गजरा,
पर माथे पर बिंदी की कशिश लुभाती है l
हौले -हौले बादल की तरह पीछा करता हूं,
कोई मधुबाला जब भी पनघट को जाती है l
इजहार ए इश्क का अंदाज नया है यारों,
वो देख मुझे हाथों से जो अक़्स छुपाती है l
इतरा के उंगलियों से जुल्फों को संवारना,
यहीं अदा तेरी महफिल में आग लगाती है l
हयात- जिंदगी
पाज़ेब – पायल
अक्स – चेहरा
✍️ दुष्यंत कुमार पटेल