आंखें न देख सकीं,
आंखें न देख सकीं,
हालांकि ये सब देख लेतीं हैं,
कभी कभी जो,
दिल नहीं समझ पाता,
उसे भी भांप लेतीं हैं.
कभी कभी, बड़ी भोली,
बन जाती है,
किसी के चेहरे पर लगे,
मुखौटे को नहीं,
पहचान पाती है.
कभी कभी, बन जाती हैं,
एहसासों वालीं,
कि जरा सी बात पर भी,
रो जाती हैं.
खुशियों से जी-तौड,
दोस्ती है,
जो सब अपने इकठ्ठा हो जाएं,
हंसते हंसते, फिर,
रो जातीं हैं.
कभी कभी, कमाल कर देती हैं,
जब मन न करे,
नजरें, चुरा भी लेतीं हैं,
तो आंखों से,
बात कह देतीं हैं.
इन्हीं से रिश्तों में लिहाज है,
दिल में उतरती आवाज है,
वक्त की नजाकत को
समझातीं हैं,
वाकई, ये, बेहद, लाजवाब हैं.