“आँसू”
मेरे आँसू,
मेरे सच्चे साथी,
मेरे सच्चे हमसफर।
जब कभी व्यथित होता है हृदय,
तब यह बहते हैं अविरल,
मेरी विवशता पर।
जब मिलती है,
कोई लघु-प्रसन्नता
तब भी चूकते नहीं
और अनायस ही,
ढुलक पड़ते हैं कपोलों पर।
जबमेरे बारे मे
लोगों की संकीर्ण मानसिकता
कह देती है,
कोई तुच्छ, नीच बात
तब भी,
साथ नहीं छोड़ते
और आ जाते हैं,
स्वतः ही पलकों पर।
जब जीवन-पथ पर
असफलता का हार ही
गले पड़ता है
और निराशा का ताज ही
सिर चढ़ता है
तब भी,
व्यथित, दुखी मन से वे
बह पड़ते हैं,
मुझे दिलासा देने के लिए।
तब लगता है,
इनसे सच्चा साथी कोई नहीं,
कोई भी नहीं…।
©निकीपुष्कर