आँधी
कुण्डलियाँ छंद ।
आँधी अंतर में उठी ,देखा जड संसार ।
नैनो की आशा गयी ,लूटा मन व्यवहार ।
लूटा मन व्यवहार, देह छल ठहरे कैसे ।
मिले चित को सार,राम धन उपजे जैसे ।
जीना सच्चा जान , गुरू से डोरी बांधी ।
निखरे भीतर भान, नेह बन बरसी आँधी।।
छगन लाल गर्ग “विज्ञ”!