आँख से अपनी अगर शर्म-ओ-हया पूछेगा
आँख से अपनी अगर शर्म-ओ-हया पूछेगा
तो गुनहगार गुनाहों की सज़ा पूछेगा
मेरे महबूब का दीदार मय्यसर हो तो
आँख में दिल को बिठा कर के मज़ा पूछेगा
सोच से मुझपर जहन्नुम को न वाजिब करना
ये वो अल्फ़ाज़ हैं हमसे जो ख़ुदा पूछेगा
रूह बीमार है करले तू अयादत ख़ुद की
बे-सुकूँ क़ल्ब की कब जा के दवा पूछेगा
उलझा रहता है यज़ीदो के ही किस्सो में ‘फ़ुज़ैल’
फिक्र कर ये के ख़ुदा कब्र में क्या पूछेगा
©फ़ुज़ैल सरधनवी