आँख पर
आँख पर क्या कहूँ…अब
कोई गलती हुई
तो आँख ना उठाई गई
किसी का धोखा खाया
आँख खुल गई
डराया और धमकाया
आँख दिखा कर हीं तो
क्रोध में आँख हीं तो लाल हुई
जो आए दुर्दिन
आँखें ही तो फेरी गईं
बैठकर खाते रहे
आँख में खटकते रहे
नौकरी न मिली तो
आँख में ही चुभते रहे
कोई काबिल था इतना
आँख का तारा बना
कोई बेकार इतना
किरकिरी बन चुभता रहा
किसी की आँख पर पर्दा पड़ा
किसी ने मूँद ली आँखें ही अपनी
कि सच्चाई कोई ना देख पाया
किसी ने आँख का काजल चुराया
किसी ने राह में आँखें बिछाईं
हमें आँखों के ऊपर
किसी की शायरी एक याद आई
नुमाया भी करे है
छुपाया भी करे है
ये आँखें हैं खुदा की एक नेमत ✍️