” आँखों से मोती ढलते हैं ” !!
पीड़ा से अनबन हो जाये ,
आँखों से मोती ढलते हैं !
आशाओं के दर्पण चटके ,
छन से तो आवाज हुई ना !
यायावर सा जीवन भटके ,
कभी कोइ मनुहार छुई ना !
जहाँ उठे हैं तेज बवंडर ,
तृष्णा को अकसर छलते हैं !!
बंशी की मीठी तानों ने ,
झकझोरा है मन को जब तब !
अनजानी सी हूक उठी है ,
मिल पाया अपना कोई तब !
टूटे डोर मिलन की कोई ,
आँखों के आसूँ खलते हैं !!
कभी कभी सिलते हैं रिश्ते ,
टूट गये तो रास न आये !
रेशम रेशम सी फिसलन है ,
ढूंढ़ें अपने और पराये !
जब जब खूब सहेजी यादें ,
आँखों में सपने पलते हैं !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )