आँखों से दिल में समाए बार-बार!!
ज़ख्म हरे रहे भले, भरे बाजार में,
दर्द से कराहते रहे, भरे बाज़ार में|
चलो याद तो रहे, वो इसी बहाने,
वरन बेच दिए होते,सरे बाज़ार में||
कुरेदते रहे ज़ख्म यादों में बार-बार,
स्वप्न में भी आते रहे हमारे बार-बार|
चुभन थी जो दिल में वो टीस बन गई,
वो आँखों से दिल में समाए बार-बार||
✍के.आर.परमाल “मयंक”