तेरी तस्वीर को लफ़्ज़ों से संवारा मैंने ।
*झूठी सब शान दिखाते हैं, यह बहुत बड़ी मायावी है (राधेश्यामी
कई रंग दिखाती है ज़िंदगी हमें,
ज़िंदगी ने अब मुस्कुराना छोड़ दिया है
खुशनुमा – खुशनुमा सी लग रही है ज़मीं
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
कुछ अजूबे गुण होते हैं इंसान में प्रकृति प्रदत्त,
ग़ज़ल _ आइना न समझेगा , जिन्दगी की उलझन को !
अगर आपको सरकार के कार्य दिखाई नहीं दे रहे हैं तो हमसे सम्पर्
जीवन और रंग
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
"गिराने को थपेड़े थे ,पर गिरना मैंने सीखा ही नहीं ,
🙏 🌹गुरु चरणों की धूल🌹 🙏
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
आज भी कभी कभी अम्मी की आवाज़ सुबह सुबह कानों को सुन
बात बिगड़ी थी मगर बात संभल सकती थी