मैं हर रोज़ देखता हूं इक खूबसूरत सा सफ़र,
*माहेश्वर तिवारी जी: शत-शत नमन (कुंडलिया)*
मन को भाये इमली. खट्टा मीठा डकार आये
खांचे में बंट गए हैं अपराधी
शिलालेख पर लिख दिए, हमने भी कुछ नाम।
बेजुबाँ सा है इश्क़ मेरा,
करो सम्मान पत्नी का खफा संसार हो जाए
मेरी कलम आज बिल्कुल ही शांत है,
वस्तुएं महंगी नही आप गरीब है जैसे ही आपकी आय बढ़ेगी आपको हर